कन्या पूजन ( कविता )


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नवरात्रि की अष्टमी तिथि ,
प्रौढ़ होते, धनवान दम्पति ,
अपनी दरिद्र काम वालियों
की पुत्रियों के चरण
अपने कर कमलों से
प्यार से प्रक्षालन कर रहे थे.

अचरज से कोई पूछ बैठा ,
यह क्या कर रहें हैं आप दोनों ?

अश्रुपूर्ण नत नयनों से कहा –
“काश, हमारी भी प्यारी संतान होती.”
सब कुछ है हमारे पास ,
बस एक यही कमी है ,

एक ठंडी आह के साथ कहा –
प्रायश्चित कर रहें है ,
आती हुई लक्ष्मी को
गर्भ से ही वापस लौटाने का.

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Source: कन्या पूजन ( कविता )

36 thoughts on “कन्या पूजन ( कविता )

  1. अद्भुत! काश देवी की मूरत की पूजा को महत्व देने वाले कुछ लोग, कन्याओं के रूप में आई देवीओं का महत्त्व समझ पाते..

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    1. धन्यवाद पंकज, साल में एक दिन कन्याअों को पुजने से हमारा कर्तव्य पूरा नहीं हो जाता है। उन्हें समाज में सम्मान अौर बराबरी का दर्जा देने की जरुरत है।

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