श्वास –प्रश्वास का महत्व

 

breath

 साँसो की मदद से रक्तशोधन, अंगों का पुष्ट होना, शरीर में आक्सीजन की मात्रा और ऊर्जा में वृद्धि जैसी बातें हम सभी जानते हैं। श्वास रोग के मनोवैज्ञानिक कारणों से भी होते हैं।  

हमारी अनेक बीमारियाँ साईकोसोमैटिक होती है। साईकोसोमैटिक का मतलब होता है मन की परेशानियाँ शारीरिक बीमारी का रूप ले लेती है। मतलब बीमारी का कोई शारीरिक कारण नहीं होता है, बल्कि मानसिक कारणों से ये बीमारियाँ होती है। चिंता, परेशानी या घबराहट जैसी स्थिति में साँसों का तेज़ चलना, साँस न ले पाना, साँस अटकना या दम फूलना इसका उदाहरण है। पर जब ये परेशानियाँ बढ़ कर बीमारी बन जाती है । तब इलाज की जरूरत पड़ती है।ऐसी साईकोसोमैटिक बीमारियों का सबसे अच्छा और स्वाभाविक इलाज है गहरा, लंबा साँस या प्राणायाम। प्राणायाम रोगों के उपचार में  सहायता करने  के साथ हमारे अंदर  शक्ति भी जगाता है।

 गुलाब के फूलों का क्या वजन होता है ? यह वजन फूलों से ज्यादा मतलब रखता है कि हमने इसे कितने देर  के लिए थाम रखा है। कुछ पलों या मिनटों  के लिए थामना हो तो ये फूल, फूलों जैसे हल्के लगेंगे। अगर कुछ घंटे पकड़ना हो तो थोड़े भारी लगेंगे अगर कुछ दिनों तक थामना हो तब बहुत भारी लगेंगे। जब नाजुक, खुबसूरत फूल भी थामे रखने से भारी लगते है। तब सोचिए,  अगर हम अपनी चिंताओं, तनाव,  विचारों और परेशानियों को थामे रहें तो ये कितने भारी पड़ते होंगे हमारे मन पर। इसलिए इन चिंताओं, तनाव,  विचारों को हमारे  जीवन में आते-जाते रहने देना चाहिए। साँसें भी हमे यही सिखाती है। किसी परेशानी को पकड़ो मत। साँसों की तरह आने जाने दो।

 विज्ञान, मनोविज्ञान और आध्यात्म, तीनों के अनुसार हम सभी के अंदर अपार  मानसिक और शारीरिक  क्षमता संचित  है। जो सुप्त या सोई अवस्था में है। हम उस शक्ति  का बहुत कम  हिस्सा उपयोग में लाते है। अगर हम अपने अंदर की शक्ति या क्षमता के थोड़े  हिस्से से इतना कुछ कर रहे है। तब सोचिए, अगर हम अपनी  क्षमता बढ़ा लें तब हम  कितना कुछ कर सकते है? हमें इसे बढ़ाने की कोशिश करनी चाहिए। जिस से हम अपनी चिंताओं, तनाव,  विचारों, परेशानियों का सामना सही तरीके से कर सकें।   

 विज्ञान के अनुसार हमारा मस्तिष्क दाहिना और बायाँ दो हेमीस्फेयर में  बाँटा है। हम प्रायः किसी एक हिस्से को ज्यादा काम में लाते है।

 मनोविज्ञान के मुताबिक मस्तिष्क तीन स्तरों पर काम करता है- चेतन, अवचेतन और अचेतन। अचेतन मन लगभग 70 प्रतिशत है। यह मन का  सबसे बड़ा हिस्सा है । इस पर हमारा नियंत्रण न के बराबर है। मतलब हम लगभग 30  प्रतिशत दिमाग ही नियंत्रित करते हैं और उपयोग में लाते हैं।

 आध्यात्म के अनुसार हमारे अंदर सात चक्र है। जिनमे विभिन्न  शक्तियाँ संचित है। इसे  कुंडलनी शक्ति के नाम से जाना जाता है। जो शक्ति सोई है।  

अर्थात विज्ञान, मनोविज्ञान और आध्यात्म तीनों मानते है कि मनुष्य में बहुत  शक्ति और सामर्थ्य  है। जिसका काफी कम हिस्सा ही हम अपने काम मे लाते है। अब महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि क्या  हम अपनी इस संचित शक्ति को  जागृत कर सकते है ? इसका जवाब किसी  विज्ञान या  मनोविज्ञान के पास नहीं है।

पर हमारे विद्वान मनीषियों, ज्ञानी जनों  और संत- महात्माओं के पास इसका उत्तर उपलब्ध है, योग और प्राणायाम के रूप में। प्राचीन काल से  विद्वान जन योगाभ्यास की सहायता से इसे जागृत करते रहे हैं। यह ज्ञान आज भी हमारे पास है। इसे जागृत करने में योग और प्राणायाम महत्वपूर्ण है।

साँस हमारे जीवन का आधार है। पर जब हम इसे सुनिश्चित तरीके से प्राणायाम के रूप में  साँस लेते है तब यह बहुत लाभदायक हो जाता है। जब हम दाहिनी नासिका से साँस लेते है तब इड़ा नाड़ी और बाईं नासिका के साँस से पिंगला नाड़ी काम करती है। दोनों नासिका से सही और समान रूप से साँस लेने से  दोनों नाड़ियों  समान रूप से चलने लगती हैं। जिससे हमारी तीसरी महत्वपूर्ण नाड़ी सुषुम्ना काम करने लगती है। यह नाड़ी सातों चक्रों को बेधती हुई कपाल पर स्थित  सहस्त्रार चक्र तक जाती है। अर्थात यह सभी चक्रो को जागृत या एक्टिव करती है। सभी चक्रों में विभिन्न ऊर्जा  संचित होती है। इन शक्तियों के जागरण से व्यक्ति में  मानसिक, शारीरिक  और  आध्यात्मिक संतुलन का विकास होता है साथ ही विभिन्न कला में निपुणता आती है जैसे गायन, वाचन, वादन, संगीत, चित्रकारिता, लेखन, बौद्धिकता  आदि ।  

हमारे अंदर की अपार शक्ति को  श्वास –प्रश्वास या प्राणायाम  से जागृत कर काम में लाया जा सकता  हैं। ठीक वैसे, जैसे बिजली के सभी फिटिंग्स  बिजली या विद्धुत प्रवाह से काम में लाये जा सकते  हैं। इसलिए साँसों के महत्व को समझते हुए हमें नियमित प्राणायाम करना चाहिए। जिससे शारीरिक और मानसिक समस्याओं के उपचार के साथ हमारा  आध्यात्मिक विकास भी होता है।  श्वास  रोग का उपचार श्वासों मे ही छुपा है।    

                       साँस तो हम लेते है। हर दिन हर पल ।

                             क्यों नहीं लेते इसे प्यार से,

                         साँस लीजिये, खुलकर साँस लीजिये।

                         आती जाती इन साँस की लहरों को

                           बस नियम में बांध लीजिये,

                            देखिए फिर इनका जादू ।

 

 

image taken from internet.

कोमगाटा मारू ( सच्चाई पर आधारित मार्मिक कविता)

 

(यह भारतीयों की एक मार्मिक कहानी है। “कोमगाटा मारू” जापानी जहाज़ में 376 भारतीय यात्री सवार थे। यह जहाज़ 4 अप्रैल 1914 को निकला। ये भारतीय कनाडा सरकार की  इजाज़त से वहाँ पहुंचे। पर उन्हे बैरंग लौटा दिया गया। )

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सुदूर देशों में ज्ञान बाँटने और व्यवसाय करने,

         हम जाते रहें है युगों से।

          आज हम फिर, अच्छे जीवन की कामना, गुलामी और

                संभावित  विश्वयुद्ध के भय से भयभीत।  

                        निकल पड़े अनंत- असीम  सागर में,

                               कोमगाटा मारू जहाज़ पर सवार हो।

                                       चालीस दिनों की कठिन यात्रा से थके हारे,

                                               हम पहुँचे सागर पार अपने मित्र देश।

                                                         पर, पनाह नहीं मिला। 

 वापस लौट पड़े भारतभूमि,

        पाँच महीने के आवागमन के बाद

               कुछ मित्रो को बीमारी और अथक यात्रा में गवां।

                        टूटे दिल  और कमजोर काया के साथ लौट,

                               जब सागर से दिखी अपनी मातृभूमि।

                                       दिल में राहत और आँखों में आँसू भर आए।

   अश्रु – धूमिल नेत्रों से निहारते रहे पास आती जन्मभूमि – मातृभूमि।

 

 तभी ………………….

गोलियों से स्वागत हुआ हमारा। कुछ बचे कुछ मारे गए।

अंग्रेजों  ने देशद्रोही और प्रवासी का ठप्पा लगा ,

 अपने हीं देश आने पर, भेज दिया कारागार।

स्वदेश वापसी का यह इनाम क्यों?

 

 

छाया- चित्र इन्टरनेट के सौजन्य से।