सामने में सभी एक दूसरे के तारीफ में मीठी -मीठी बातें करते है. पर पीठ पीछे खुल जाता है शिकवा शिकायतों का पुलंदा.
क्या शतक दर शतक गुलामी की जंजीरों में बँध कर हम ऐसे हो गये है ? मुगलों और अंग्रेजों की चाटुकारिता करते करते यह हमारी आदत बन गई है?
कभी -कभी शक होने लगता है – सच्चे रिश्ते होते हैं या नहीँ ?
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अगर मैं झूठ बोलूंगा तो गैरत मार डालेगी,
अगर मैं सच बोलूंगा तो हुकुमत मार डालेगी।
बहुत होशियार रहना है हिन्दू-मुस्लमां को,
वरना लड़ाकर आपस में सियासत मार डालेगी।..
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वाह , बहुत सही लिखा आपने इमरान – “बहुत होशियार रहना हैं “
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Shuqria
Rekha ji
Haunsla afzai aur haqparasti ke lie!
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😊
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Hum apne is khubsurat Gulistaan ko Barbaad nahi hone denge.!
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Thanks.
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