रिश्ते – मुँह में राम बगल में छुरी

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सामने में सभी एक दूसरे के तारीफ में मीठी -मीठी बातें करते है. पर पीठ पीछे खुल जाता है शिकवा शिकायतों का पुलंदा.

क्या शतक दर शतक गुलामी की जंजीरों में बँध कर हम ऐसे हो गये है ? मुगलों और अंग्रेजों की चाटुकारिता करते करते यह हमारी आदत बन गई है?

कभी -कभी शक होने लगता है – सच्चे रिश्ते होते हैं या नहीँ ?

 

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6 thoughts on “रिश्ते – मुँह में राम बगल में छुरी

  1. अगर मैं झूठ बोलूंगा तो गैरत मार डालेगी,
    अगर मैं सच बोलूंगा तो हुकुमत मार डालेगी।

    बहुत होशियार रहना है हिन्दू-मुस्लमां को,
    वरना लड़ाकर आपस में सियासत मार डालेगी।..

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