मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग (ज्योतिर्लिंग 2 )

 

ज्योतिर्लिंग – पुराणों के अनुसार शिवजी जहाँ-जहाँ स्वयं प्रगट हुए उन बारह स्थानों पर स्थित शिवलिंगों को ज्योतिर्लिंगों के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है। हिंदु मान्यतानुसार इनके दर्शन, पूजन या प्रतिदिन प्रात:काल और संध्या के समय इन बारह ज्योतिर्लिङ्गों का नाम लेने मात्र से सात जन्मों का पाप नष्ट हो जाता है।

शिव पुराण – शिव पुराण, कोटि ‘रुद्रसंहिता’ में इस प्रकार बारह ज्योतिर्लिंगों की चर्चा है, जिसमें सोमनाथ का वर्णन प्रथम ज्योतिर्लिंग के रूप में किया गया है।

सौराष्ट्रे सोमनाथंच श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।
उज्जयिन्यां महाकालमोंकारं परमेश्वरम्।।
केदारं हिमवत्पृष्ठे डाकियां भीमशंकरम्।
वाराणस्यांच विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे।।
वैद्यनाथं चिताभूमौ नागेशं दारूकावने।
सेतूबन्धे च रामेशं घुश्मेशंच शिवालये।।
द्वादशैतानि नामानि प्रातरूत्थाय यः पठेत्।
सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति।।
यं यं काममपेक्ष्यैव पठिष्यन्ति नरोत्तमाः।
तस्य तस्य फलप्राप्तिर्भविष्यति न संशयः।।

अर्थात – सौराष्ट्र प्रदेश (काठियावाड़) में श्रीसोमनाथ, श्रीशैल पर श्रीमल्लिकार्जुन, उज्जयिनी (उज्जैन) में श्रीमहाकाल, ॐकारेश्वर अथवा अमलेश्वर, परली में वैद्यनाथ, डाकिनी नामक स्थान में श्रीभीमशङ्कर, सेतुबंध पर श्री रामेश्वर, दारुकावन में श्रीनागेश्वर, वाराणसी (काशी) में श्री विश्वनाथ, गौतमी (गोदावरी) के तट पर श्री त्र्यम्बकेश्वर, हिमालय पर केदारखंड में श्रीकेदारनाथ और शिवालय में श्रीघुश्मेश्वर। जो मनुष्य प्रतिदिन प्रात:काल और संध्या के समय इन बारह ज्योतिर्लिङ्गों का नाम लेता है, उसके सात जन्मों का किया हुआ पाप इन लिंगों के स्मरण मात्र से मिट जाता है।

मल्लिकार्जुन – दक्षिण का कैलाश, आन्ध्र प्रदेश के कृष्णा ज़िले में कृष्णा नदी के तट पर श्रीशैल पर्वत पर श्रीमल्लिकार्जुन विराजमान हैं। ऐसी मान्यता है की, श्रीशैल पर्वत पर भगवान शिव का पूजन करने से अश्वमेध यज्ञ करने का फल प्राप्त होता है। श्रीशैल के शिखर के दर्शन मात्र से भक्तों के सभी कष्ट दूर हो, अनन्त सुखों की प्राप्ति होती है और संसार में आवागमन से मुक्ति मिल जाती है।

पौराणिक कथा– जब कार्तिकेय और गणेश दोनों विवाह योग्य हुए। तब किसका विवाह पहले हो , इसपर विवाद होने लगा। माता-पिता ने कहा, जो इस पृथ्वी की परिक्रमा पहले करेगा, उस का विवाह पहले किया जाएगा। कार्तिकेय जी तत्काल पृथ्वी की परिक्रमा करने के लिए दौड़ पड़े। स्थूलकाय गणेश जी का अपने वाहन मूषक पर पृथ्वी परिक्रमा असंभव था। अतः बुद्धिदेव गणेश ने माता पार्वती और पिता देवाधिदेव शिव को आसन आसीन कर उनकी सात परिक्रमा की और विधिवत् पूजन कर उनका आशीर्वाद लिया। फलतः गणेश माता-पिता की परिक्रमा कर पृथ्वी की परिक्रमा से प्राप्त होने वाले फल की प्राप्ति के अधिकारी बन गये।

पित्रोश्च पूजनं कृत्वा प्रकान्तिं च करोति यः।
तस्य वै पृथिवीजन्यं फलं भवति निश्चितम्।।

उनकी चतुराई से शिव और पार्वती प्रसन्न हुए और गणेश जी का विवाह विश्वरूप प्रजापति की पुत्रियां सिद्धि और ऋद्धि से करा दिया।
कार्तिकेय सम्पूर्ण पृथ्वी की परिक्रमा करके वापस आये। सारी बात जान कर नाराज़ कार्तिकेय, घर त्याग कर क्रौंच पर्वत पर चले गए। शिव और पार्वती ने कार्तिकेय को मनाने का बहुत प्रयास किया। पर वे वापस नहीं आये। तब दुखी माता पार्वती भगवान शिव को लेकर क्रौंच पर्वत पर पहुँची। भगवान शिव क्रौंच पर्वत पर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए और मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के नाम से जाने गए। मल्लिका, माता पार्वती का नाम है और भगवान शंकर को अर्जुन कहा जाता है। अतः इसे मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग कहा जाता है। परंतु कार्तिकेय उनके आने से पहले क्रौंच पर्वत छोड़ कर जा चुके थे।

सोमनाथ ( ज्योतिर्लिंग -1)

SHIV
SHIV

ज्योतिर्लिंग – पुराणों के अनुसार शिवजी जहाँ-जहाँ स्वयं प्रगट हुए उन बारह स्थानों पर स्थित शिवलिंगों को ज्योतिर्लिंगों के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है। हिंदु मान्यतानुसार इनके दर्शन, पूजन या प्रतिदिन प्रात:काल और संध्या के समय इन बारह ज्योतिर्लिङ्गों का नाम लेने मात्र से सात जन्मों का पाप नष्ट हो जाता है।

शिव पुराण – शिव पुराण, कोटि ‘रुद्रसंहिता’ में इस प्रकार बारह ज्योतिर्लिंगों की चर्चा है, जिसमें सोमनाथ का वर्णन प्रथम ज्योतिर्लिंग के रूप में किया गया है।
सौराष्ट्रे सोमनाथंच श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।
उज्जयिन्यां महाकालमोंकारं परमेश्वरम्।।
केदारं हिमवत्पृष्ठे डाकियां भीमशंकरम्।
वाराणस्यांच विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे।।
वैद्यनाथं चिताभूमौ नागेशं दारूकावने।
सेतूबन्धे च रामेशं घुश्मेशंच शिवालये।।
द्वादशैतानि नामानि प्रातरूत्थाय यः पठेत्।
सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति।।
यं यं काममपेक्ष्यैव पठिष्यन्ति नरोत्तमाः।
तस्य तस्य फलप्राप्तिर्भविष्यति न संशयः।।

अर्थात – सौराष्ट्र प्रदेश (काठियावाड़) में श्रीसोमनाथ, श्रीशैल पर श्रीमल्लिकार्जुन, उज्जयिनी (उज्जैन) में श्रीमहाकाल, ॐकारेश्वर अथवा अमलेश्वर, परली में वैद्यनाथ, डाकिनी नामक स्थान में श्रीभीमशङ्कर, सेतुबंध पर श्री रामेश्वर, दारुकावन में श्रीनागेश्वर, वाराणसी (काशी) में श्री विश्वनाथ, गौतमी (गोदावरी) के तट पर श्री त्र्यम्बकेश्वर, हिमालय पर केदारखंड में श्रीकेदारनाथ और शिवालय में श्रीघुश्मेश्वर। जो मनुष्य प्रतिदिन प्रात:काल और संध्या के समय इन बारह ज्योतिर्लिङ्गों का नाम लेता है, उसके सात जन्मों का किया हुआ पाप इन लिंगों के स्मरण मात्र से मिट जाता है।

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग– यायावर शिव के १२ ज्योतिर्लिंग है। जिसमें गुजरात (सौराष्ट्र) के काठियावाड़ में सोमनाथ मन्दिर जिसे सोमनाथ ज्योतिर्लिंग को प्रथम माना गया है।
माना जाता है कि पापनाशक-तीर्थ, सोमनाथ भगवान की पूजा और उपासना करने से क्षय तथा कोढ़ आदि जैसे कठिन रोग नष्ट हो जाते हैं। मान्यता है कि, देवताओं द्वारा स्थापित सोमकुण्ड में लगातार छः माह तक स्नान करने से क्षय जैसे रोग ठीक हो जाते हैं।

सोमनाथ
सोमनाथ

पौराणिक कथाहर रात गगन में, दस सफेद घोड़े या मृगवाले रथ पर सवार युवा, सुंदर चंद्र मन मस्तिष्क, भावनाओं, संवेदनशीलता, कोमलता और कल्पनाशीलता का प्रतिनिधित्व करता है । उन्हें राजनीपति (रात का स्वामी ) और सोम भी कहा गया है। ऐसे उज्ज्वल चाँद से प्रजापति दक्ष ने अपनी सत्ताइस पुत्रियों का विवाह प्रसन्नपूर्वक किया।

चन्द्रमा को अपनी सत्ताइस पत्नियों में रोहिणी विशेष प्रिय थी। अतः अन्य 26 पत्नियों ने अपने पिता अपनी व्यथा कही। पुत्रियों की व्यथा और चन्द्रमा के पक्षपातपूर्ण व्यवहार सुनकर दक्ष भी दुःखी हुए। उन्होने ने अपने दामाद समझाने का बहुत प्रयास किया। पर चंद्रमा उनकी अवज्ञा करते रहे। क्रोधित हो दक्ष ने चंद्रमा को क्षयरोग होने का श्राप दे दिया। इस श्राप से मुक्ति के लिए चंद्र ने पर कठिन शिव आराधना और मृत्युंजय-मंत्र जप किया। शिव उनकी दृढ़ भक्ति को देखकर इस स्थान पर साकार लिंग रूप में प्रकट हो गये। शिव ने साक्षात दर्शन दे कर वर दिया कि उसकी कला प्रतिदिन एक पक्ष में क्षीण हुआ करेगी, जबकि दूसरे पक्ष में प्रतिदिन वह निरन्तर बढ़ती रहेगी। चन्द्रमा के नाम पर भगवान शिव सोमनाथ कहलाए और सोमेश्वर के नाम से प्रसिद्ध हुए।