केलौग्स चौकोज के साथ खुल जाए बचपन, खिल जाए बचपन ( Blog related topic )

बात कुछ पुरानी है। तब मेरी मेरी दोनों बेटियाँ छोटी-छोटी थीं। छोटे से बच्चे को पाल-पोस कर बड़ा करना कितनी बड़ी ज़िम्मेदारी है, यह एक माँ ही बता सकती है। कुछ ऐसी ही मेरे भी कहानी है।

तब दोनों बेटियाँ स्कूल में पढ़तीं थी। मैं भी नौकरी करती थी। इसलिए सुबह घर में बड़ी भाग -दौड़ रहती थी। दोनों को तैयार करना, टिफ़िन देना, फिर उन्हें नाश्ता करवा कर समय पर रवाना करना बहुत बड़ा काम होता था। इसके साथ हीं मुझे भी तैयार होना पड़ता था। ताकि मुझे अपने स्कूल जाने में देर ना हो जाये।

इन बातों का मतलब यह है कि तब सुबह का हर पल मूल्यवान होता था। किसी छोटे बच्चे की माँ को मैनेजमेंट के कोर्स में पढ़ाये जानेवाले समय प्रबंधन और बहुकार्य या मल्टीटास्किंग सिखाने की जरूरत नहीं होती है। वह छोटे बच्चों के पीछे भाग-भाग कर अपने आप सब सीख जाती है। कुछ वही हाल मेरा भी था। इन सारे कामों में सबसे कठिन काम था दोनों को नाश्ता करवाना और दूध पिलाना। रोज़ दोनों दूध नहीं पीने के किसी नए बहाने के साथ तैयार मिलतीं।

तभी मुझे मेरे एक सहेली नें केलौग्स चौकोज का नया पैकेट दिखाया। उसने बताया कि यह बच्चों को यह बड़ा पसंद आता है। मैंने पैकेट पर लिखे पोषण तत्वों को ध्यान से पढ़ा। इस पर लिखे विटामिन ए, सी, प्रोटीन, कैल्सियम, आयरन और कैलोरी की जानकारी पढ़ कर मैं खुश हो गई। इसमें चाकलेट का स्वाद और मिठास भी थी। बस, मैं बाज़ार से तुरंत एक पैकेट केलौग्स चौकोज खरीद कर ले आई। मन हीं मन खुश हो रही थी, चलो अब बेटियों को स्वास्थ्यवर्धक नाश्ता देना आसान हो गया। समय की बचत और बच्चों का मनपसंद नाश्ता भी, मतलब एक पंथ दो काज।

अगली सुबह खुशी-खुशी मैंने दो बॉल में दूध दिया और उस पर केलौग्स चौकोस डाले। पर यह क्या? दोनों बेटियों ने नई चीज़ देख कर मुँह बना लिया। मेरे तो होश उड़ गए। मैंने उनके लिए कुछ और नाश्ता बनाया ही नहीं था और अब कुछ और  बनाने का समय भी नहीं था।

मुझे समझ नहीं आ रहा था अब क्या करूँ? तभी मुझे एक तरकीब सूझी। मैंने उन्हे एक कहानी सुनाना शुरू किया – राजा रानी की कहानी । मैंने उनसे कहा, दूर एक देश है। जिसे इग्लैंड या यूनाइटेड किंगडम कहते हैं। वहाँ आज भी राजा-रानी और राजकुमार होते हैं। यह केलॉग्स राजा रानी और राजकुमारों के देश से आया है। मैंने कनखियों से देखा वे ध्यान से कहानी सुन रहीं थी। मैंने चम्मच से खिलाना शुरू किया और फिर धीरे से चम्मच उनके हाथों में पकड़ा दिया। दोनों को स्वाद पसंद आया। तभी छोटी बेटी पूछ बैठी -” मम्मी, क्या वहाँ का राजकुमार भी यह केलॉग्स चौकोज़ खाता है।” अब दोनों के प्रश्न खत्म ही नही हो  रहे थे, पर नाश्ता झट से खत्म हो गया। मेरे जान में जान आई। अब तो दोनों केलॉग्स चौकोज़ को राजकुमार वाला नाश्ता ही बुलाने लगीं और बिना नाज़-नखरा अपने से मांग कर खाने लगीं।

वास्तव में मैंने कहीं पढ़ा था कि केलॉग्स का सबसे बड़ा कारखाना यूनाइटेड किंगडम के ट्रैफर्ड पार्क, मैनचेस्टर में है और केलॉग एक रॉयल वारंट रखती है, जो उसे एलिजाबेथ द्वितीय और प्रिंस ऑफ वेल्स से प्राप्त हुआ था। इसे हीं कहानी बना कर मैंने उन्हें सुना दिया था।

अब दोनों बेटियाँ बड़ी हो कर इंजीनियर बन चुकी हैं। बड़ी बेटी को मैनेजमेंट की पढ़ाई के बाद, अभी हाल में विदेश जाने का अवसर मिला। वह वहाँ से मेरे लिए अनेक विदेशी उपहार  ले कर लौटी और साथ में ले कर आई केलौग्स चौकोज का डब्बा। उसने हँस कर मुझ से कहा – ” मम्मी, राजकुमारों वाला केलौग्स चौकोज  उसके हीं देश से ले कर आई हूँ। मेरी  आँखों के सामने उनके  बचपन के  “खुशी के  पल” नाच उठे।

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