पौराणिक कथा के अनुसार 12 वर्ष के भयंकर सूखे से सरस्वती नदी शुष्क हो तिरोहित हो गई। इसका गहरा प्रभाव मानव जाति पर पड़ा।
इस दौरान मानव, मात्र अपने जीवित रहने के प्रयास में ज्ञान से दूर होता गया। इस नदी के तट पर यज्ञ-पूजन करने वाले ऋषीगण और लोग, भयंकर आकाल के कारण यहाँ से पलायन कर गए। इस भयंकर आकाल ने सरस्वती नदी के साथ वेद के ज्ञानों को भी लुप्त कर दिया।
सरस्वती ही तब विशालतम, परम पवित्र ,और मुख्य नदी थी। ऐसा वर्णन वेद, पुराण रामायण, महाभारत, वैदिक सभ्यता आदि में मिलता है।
यह देख महर्षि पराशर के पुत्र और भगवान ब्रह्मा के अवतार, वेद व्यास या कृष्ण द्वयपायन ने पुनः सभी ज्ञानपूर्ण वेदों को जमा, संकलित और सरल भाषा में रचित किया । इसे चार वेदों ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद व अथर्ववेद में पुनः जन सामान्य के सामने प्रस्तुत किया। ताकि पुनः समाज का निर्माण हो सके। इन्होने वेदों को सरल, और जन साधारण की भाषा में लिखा। जो भाष्य कहलाए और द्वयपायन वेद व्यास कहलाने लगे ।
ऋग्वेद के नदी सूक्त के अनुसार यह पौराणिक नदी पंजाब के पर्वतीय भाग से निकलकर कुरुक्षेत्र और राजपूताना से होते हुए प्रयाग या इलाहाबाद आकर यह गंगा तथा यमुना में मिलकर पुण्यतीर्थ त्रिवेणी कहलाती है। मान्यता है कि आज भी प्रयाग में यह अंत:सलिला है यानि धरती के अंदर ही अंदर बहती है।
वर्तमान सूखी हुई सरस्वती नदी के समानांतर खुदाई में ५५००-४००० वर्ष पुराने शहर मिले हैं जिन में पीलीबंगा, कालीबंगा और लोथल भी हैं। यहाँ कई यज्ञ कुण्डों के अवशेष भी मिले हैं, जो महाभारत में वर्णित तथ्य को प्रमाणित करते हैं।
कई भू-विज्ञानी मानते हैं कि भीषण भूकम्पों के कारण सरस्वती लुप्त हुईं हैं। ऋग्वेद तथा अन्य पौराणिक वैदिक ग्रंथों में दिये सरस्वती नदी के सन्दर्भों के आधार पर कई भू-विज्ञानी मानते हैं कि हरियाणा से राजस्थान होकर बहने वाली मौजूदा सूखी हुई घग्घर-हकरा नदी प्राचीन वैदिक सरस्वती नदी की एक मुख्य सहायक नदी थी।
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