त्रिदोष नाशक शहद को अमृततुल्य माना गया है। लगभग सभी धर्मों में किसी ना किसी रूप में मधु के उपयोगिता की चर्चा की गई है। हिन्दु धर्म के सभी धार्मिक अवसरों पर प्राय इसे उपयोग में लाया जाता है। इस्लाम में इसे सर्वरोग निवारक माना गया है। यूनानी और यहूदी धर्मों में शहद को अतिमूल्यवान और स्वस्थवर्धक कहा गया है। आयुर्वेद और आधुनिक चिकित्सा शास्त्र शहद को ऊर्जादायक और स्वास्थवर्धक मानता है। महत्वपूर्ण आहार और खाने-पीने की चीज़ों को धर्मों के साथ इसलिए जोड़ा जाता है, ताकि हम सभी उसका उपयोग किसी ना किसी रूप में हमेशा करते रहें।
उत्पादन– शहद प्रकृतिक प्रदत, खुबसूरत पुष्पों से प्राप्त होता है। मधुमक्खियाँ फूलों के रसों से मधु का निर्माण करती हैं। अक्सर मधुमक्खियाँ छत्ते बना कर उसमें शहद जमा करती हैं। साथ ही मधुमक्खियों का पालन कर के भी शहद प्राप्त किया जाता है।
रूप रंग स्वाद – यह हल्के या गहरे खुबसूरत अंबरी रंग का होता है। इसकी अपनी एक खुशबू होती है। इसकी खुशबु पुष्प स्रोत पर भी निर्भर करती है। यह मीठा और हल्का सा कसाय स्वाद का होता है।
औषधिय उपयोग – यह रक्तवर्धक, ऊर्जादायक, संक्रमण कम करने वाला होता है। घाव, सूजन, दर्द और जलने में इसका उपयोग बड़ा फायदेमंद होता है। यह पाचन क्रिया में मदद करता है।
सौंदर्य वर्धक – सौंदर्यवर्धन में शहद बहुत लाभदायक होता है। यह विभिन्न सौंदर्य उत्पादनों और फेसियलों आदि में काम में लाया जाता है। यह त्वचा को नमी प्रदान कर युवा बनाता है।
आहार के रूप में उपयोग – हमारे देश में मधु ज़्यादातर औषधि के रूप में प्रयुक्त होता रहा है। अब इसे आहार के रूप में भी इस्तेमाल किया जाने लगा है। चीनी के स्थान पर शहद का प्रयोग ज्यादा फायदेमंद है अतः आज कल चीनी के स्थान पर शहद का प्रचलन बड़ी तेज़ी से बढ़ रहा है।
मेरे व्यक्तिगत अनुभव मेरे जीवन में शहद किसी ना किसी रूप में हमेशा शामिल रहा है। मेरे दिन की शुरुआत सुबह गुनगुने जल में नींबू और शहद से होती है। यह मेद कम करता है और विजातीय पदार्थ या टॉक्सिन हटाता है। जब मेरे बच्चे छोटे थे तब उंगली पर पतले मलमल का कपड़ा लपेट कर उसमें शहद लगा कर मैं अपने नवजात शिशु के जीभ और मुँह की सफाई करती थी। छोटे बच्चों के दाँत निकलने के समय मसूढ़ो पर शहद मालिश करती। जिस से आसानी से दाँत निकलते जाते थे और संक्रामण का भी भय नहीं होता था। शहद के मीठे स्वाद के कारण बच्चे इस उपचार का मज़ा लेते थे। उनके पीने के पानी के साथ कुछ बुँदे शहद देते रहने से यह रक्तवर्धक का काम करता है। हमारे यहाँ रोटी के साथ, सलाद में ड्रेसिंग के रूप में, आइसक्रीम पर कुछ बूंदें, दूध के साथ, चीनी के बदले , मीठे व्यंजनों के रूप में प्रत्येक दिन भोजन में शहद हमारा साथी रहता है। दरअसल मैं आहार में पोषक तत्वों से समझौता नहीं करना चाहती हूँ।
इतना ही नहीं मैं शहद का प्रयोग चेहरे और आँखों में आँजने के लिए भी करती हूँ। कुछ देर शहद लगा कर धो देने से त्वचा मुलायम और नमीयुक्त रहती है और आँखें स्वच्छ हो जाती हैं। पर यह आवश्यक है कि शुद्ध, स्वच्छ, साफ और उचित प्रकार से छने हुए शहद का प्रयोग किया जाय।
पहले शहद बहुत मूल्यवान और अल्प प्राप्य होता था क्योंकि यह कम मात्रा में उपलब्ध था। तब इसे प्रकृति की देन मानी जाती थी। अतः सामान्य जन तक इसकी पहुँच पूजन सामग्री या औषधि रुप में हीं थी। अक्सर शहद के नाम पर नकली शहद बेची जाती थी। पर अब मधुमक्खी पालन उद्योग के द्वारा शहद अधिक रूप में तैयार किया जाने लगा है। साथ ही बड़ी-बड़ी भरोसेमंद कंपनियाँ जैसे डाबर द्वारा सर्व साधारण तक शुद्ध और स्वच्छ शहद उपलब्ध कराया जाने लगा है।