गुस्सा हम सभी में होता हैं. अक्सर हम गुस्सा करते हैं। अपने आस – पास हर दिन किसी ना किसी को नाराज़ होते देखते हैं। यह स्वभाविक व्यवहार हैं। कहते हैं, बड़े – बड़े ऋषि, मुनि, और विद्वान भी अपने क्रोध पर नियंत्रण नहीँ रख पाये।
मन में जमे गुस्से के गुबार को बाहर निकालना ज़रूरी हैं। मन में भरी बातें अक्सर हम पर नाकारात्मक असर डालती है। पर इस गुस्से को निकालने का तरीका और जगह ठीक होना चाहिए। कुछ लोग छोटी – छोटी बातों से नाराज़ होते रहते हैं।हर समय उनमें चिड़चिड़ापन रहता है। जिस से उनकी नाराज़गी का प्रभाव कम हो जाता हैं।
लेकिन जब हम किसी ना नाराज़ होनेवाले को गुस्से में देखते हैं। तब हम सब सकते में आ जाते हैं। क्यों ? क्योंकि जो कभी गुस्सा नहीँ करता, उसका गुस्सा हमें मालुम नहीँ होता। जिस से उनका गुस्सा ज़्यादा प्रभावशाली बन जाता हैं। वैसे लोग अपने गुस्से के असर का सही उपयोग करना जानते हैं। इसलिए हर छोटी-छोटी बात पर चिढ़ने और नाराज़ होने की आदत को नियंत्रित करना चाहिए। ताकि सही समय पर और सही जगह पर गुस्सा कर उसे प्रभावशाली बनाया जा सके।
क्रोध को कला मान कर सीखने की ज़रूरत हैं। कौन जाने, शायद कुछ समय में गुस्से /क्रोध/नाराज़गी के मैनेजमेंट की पढ़ाई भी शुरू हो जाये।