कड़ाके की ठंड थी। इस ठंड में सुबह-सुबह तैयार होना एक बड़ा काम था। पर समय पर हवाई-अड्डा पहुँचना था। जल्दी-जल्दी तैयार हो कर सुबह 8 बजे हमलोग घर से निकले। हमें लखनऊ से पुणे जाना था। गनीमत थी कि हम समय पर पहुँच गए। घड़ी देख कर चाँदनी, अधर और मैं खुश हुए, चलो देर नहीं हुई। आधे घंटे के बाद फोन पर खबर मिली कि कोहरे के कारण हवाई जहाज 30 मिनट देर से जाएगा। लखनऊ में कोहरा कुछ कम है। पर दिल्ली में घना कोहरा है। पर यह देर होने का सिलसिल लगभग दो घंटे चला। हम दो बजे दिल्ली पहुँचे। वहाँ से पुणे के जहाज का समय दोपहर 2:30 में था। इसलिए हमलोग बेफिक्र थे क्योंकि दोपहर में दिल्ली का मौसम बिलकुल साफ था और पुणे में इतनी ठंड नहीं होती है कि जहाज़ को उतरने में कोहरे की समस्या का सामना करना पड़े। पर किसी कारणवश इस हवाई जहाज के समय में भी देर होने लगा। बार-बार नज़र शीशे के बाहर के मौसम पर जा रही थी। घड़ी की सुइयाँ जैसे-जैसे आगे जा रही थी, कोहरे का असर बढ़ता जा रहा था। अगर कोहरा ज़्यादा हो जाएगा तब ना जाने हवाई जहाज का क्या होगा? ढ़ेरो जहाज इस वजह से स्थगित हो रहे थे। सूर्य पश्चिम की ओर तेज़ तेज़ी से बढ़ रहा था। लगभग 4:30 बजे शाम का समय हो चुका था। मन ही मन मैं मना रही थी कि जहाज जल्दी यहाँ से उड़ान भर ले। सूरज लाल गोले जैसा दिख रहा था। चारो ओर लाली छा गई थी। क्रिसमस की पूर्वसंध्या बड़ी खूबसूरत थी। धीरे-धीरे पश्चिम में डूबता सूरज बड़ा सुंदर लग रहा था। मैं उसकी सुंदरता को निहार रही थी। पाँच बजे शाम में सूर्य अस्त हो गया। हवाई-अड्डे के शीशे से बाहर धुंध नज़र आ रहा था। कोहरा घना हो रहा था। लगा अब हमारी उड़ान के रद्द होने की सूचना ना आ जाए। पर तभी हमे हवाई जहाज के अंदर जाने की सूचना दी गई। थोड़ी राहत तो हुई। पर अंदर बैठने के बाद भी नज़र खिड़की से बाहर घने हो रहे कोहरे पर थी। समझ नहीं आ रहा था कि इस हल्के धुंध भरे कोहरे में जहाज़ अगर उड़ान भर भी ले तो आगे कैसे जाएगा, क्योंकि अब तो कोहरा बढ़ता ही जाएगा। मैं इसी चिंता में थी और जहाज़ ने उड़ान भरी। मैंने आँखें बंद कर माथा सीट पर टिका लिया। विमान बहुत ऊंचाई पर आ गया था। थोड़ी देर बाद मेरी नज़रें विमान की खिड़की के बाहर गई। जहाज़ के पंख पर तेज़ रोशनी चमक रही थी। बाहर तेज़ धूप थी और सूर्य जगमगा रहा था। मैं हैरान थी। नीचे झाँका तो पाया कोहरे की मोटी चादर नीचे रह गई थी। हमारा जहाज कोहरे के मोटी चादर से ऊपर था। ऊंचाई पर कोहरा नहीं था। वहाँ सूरज चमचमा रहा था। संध्या 5:30 में सूर्य फिर से अस्त होता हुआ नज़र आया। यहाँ से सूर्ययास्त और भी लाजवाब लग रहा था। नीचे अंधकार जैसा था। दूर छितिज पर धरती और आकाश मिलते हुए दिख रहे थे। पूरा आसमान डूबते सूरज के लाल और नारंगी रंग में रंगा था। नज़रों के सामने एक और खूबसूरत शाम थी। एक दिन में दो बार सूर्यास्त देख कर रोमांच हो आया। एक सूर्यास्त धरती पर और दूसरा आकाश की ऊंचाइयों पर। क्रिसमस की यह पूर्वसंध्या मेरे लिए यादगार बन गई।