यात्रा वृतांत – कालीघाट मंदिर कोलकाता

कोलकाता का विश्व विख्यात कालीघाट मंदिर भारत के किसी सामान्य उत्तर भारतीय मंदिर की तरह नज़र आता है। मंदिर की सड़क पर पहुचते ही पंडो का शोर शुरू हो जाता है। अब यह भक्त के ऊपर है कि पंडो की मदद ले या नहीं। आगे बढ़ने पर वही शोर-शराबा, पूजा सामग्री की ढेरो दुकाने, बिखरे फूल, भीख मांगते लोगों की भीड़। फिर नज़र आया पवित्र मंदिर। मंदिर के अंदर के खूबसूरत सफ़ेद जमीन पर गंदे पैरो के छाप दिखते है। मिट्टी- कीचड़ लगी फर्श नीचे अभी भी सुंदर होगी, यह समझ में आता है। संगमरमरी जमीन कीचड़ सना होने पर भी पर भी पवित्र लगता है। पर मन मे ख्याल आता है- काश यह साफ सुथरा होता। तब लगता है, हम लोग ही तो बार-बार फूल, चन्दन और जल ड़ाल कर मंदिरो का यह हाल करते है- पुनि-पुनि चन्दन, पुनि-पुनि पानी…………….
पंडो की मांगो, भीड़ के धक्को के बाद मंदिर के गर्भ-गृह में पहुँचना एक बड़े उपलब्धि का एहसास दिलाता है। अधर के तीन वर्ष के काली घाट, पंजाब नेशनल बैक कलकत्ता के प्रवास के दौरान बने अच्छे संबंधो का असर साफ नज़र आता है। वहाँ के एक महत्वपूर्ण पंडित जी ने अधर को तुरंत पहचान लिया। उनके सौजन्य से बड़ी सुविधा के साथ हम दोनों एकदम देवी के सामने पहुँच गए। देवी पर चढ़े लाल जवाफूल के बड़े बड़े हार प्रसाद स्वरूप हमारे गले में ड़ाल दिए। साथ ही मिला देवी पर चढ़ा सिंदूर, चुनरी, चूड़ी, आलता और प्रसाद। देवी प्रतिमा देख कर मन श्रद्धा से भर गया। पारस पत्थर की विशाल प्रतिमा भव्य और सुंदर है। देवी के चारो हाथ और लंबी, बाहर निकली जिव्हा स्वर्णमंडित है। एक हाथ मे तलवार है, जो पवित्र दैवी ज्ञान का सूचक है। दूसरे हाथ में नरमुंड है। जो मनुष्य के अहं का सूचक है और यह दर्शाता है कि मोक्ष की प्राप्ति के लिए ईश्वरीय ज्ञान से अपने अहं का नाश करना जरूरी है। है। देवी के अन्य दो हाथ अभय और आशीर्वाद मुद्रा में है। यानि देवी के सच्चे भक्तों पर उनका आशीर्वाद हमेशा रहता है।
कालीघाट ५१ शक्तिपीठों में एक है। सती के शरीर के विभिन्न हिस्से जहाँ भी गिरे वहा शक्ति पीठों का निर्माण हुआ। मान्यता है कि कालीघाट में सती का दाहिना चरण गिरा था।
बाहर से सामान्य दिखनेवाला मंदिर एक अदभुत शांति और शक्ति का एहसास देता है। लगा जैसे माँ मेरी हर बात सुन रही है और उनका आशीर्वाद हमारे ऊपर सर्वदा से बना है। मैं मन ही मन देवी मंत्र जपने लगी-
ॐ ऐ ह्री क्लीं चामुंडाये विच्चे॥
फिर कामना करने लगी-
देहिसौभाग्यारोग्यम, देहि मे परमसुखम।
रूपं देहि जय देहि यशो देहि द्विषोजहि॥

हम सभी की बचपन से एक आदत बन जाती है। किसी मंदिर प्रांगण में पहुँच कर प्रतिमा के आगे नतमस्तक हो जाना। फिर मन की सभी कामनाएँ हम ईश्वर के सामने दुहराने लगते है। साथ ही अपनी गलतियों को भी स्वीकार करने लगते है।उसे धन्यवाद भी देते हैं।
आखिर ऐसा क्या होता है इन हिम-शीतल प्रस्तर प्रतिमाओ में? ये प्रतिमाएँ हमें सजीवता का अहसास क्यों देती है? दरअसल धर्म मनुष्य के काउन्सेलिंग की एक स्वाभाविक पद्धति है, जो बचपन से धीरे-धीरे अनजाने ही हम सीखते जाते हैं और फिर यह हमारे स्वभाव का हिस्सा बन जाता है। मन तो हमेशा भागता है।पर उसे साधने का कितना सरल तरीका है। बस इसे सीखने की जरूरत है।
ईश्वर की प्रस्तर प्रतिमा हमें अपनी भावनाओ को निर्भीक रूप से व्यक्त करने का अवसर देती है। मन में पूरा विश्वास रहता है कि ये बातें मेरे और ईश्वर के बीच है। हमें अपनी बातों के सुनवाई का पूरा विश्वास होता है। जैसे हम किसी काउंसिलर को निर्भीक रूप से अपनी समस्याओं को बताते है और हमारा मन हल्का हो जाता है।
यह मन अनेक समस्याओं का जड़ है। जब मन में भरी बातें बाहर निकलती है तब मन हल्का लगने लगता है। यह हमारे मन को निर्मलता की भावनाओ और आत्मविश्वास से भर देता है। हमारा धर्म मनुष्य के काउन्सेलिंग की एक स्वाभाविक पद्धति है, जो बचपन से धीरे-धीरे अनजाने ही हम सीखते जाते हैं और फिर यह हमारे स्वभाव का हिस्सा बन जाता है।

एक आईना ( दहेज पर आधारित वास्तविक कहानी )

नवीन कार की स्टेरिंग अपने अपार्टमेंट के रोड़ मे घुमाते हुए मन ही मन सोच रहा था – ये आज़-कल के मल्टी-नेशनल कंपनियाँ भी हद है। पैसा तो ज़्यादा जरूर देती है, पर काम भी कोल्हू के बैल की तरह लेतीं है। न तो काम का समय तय होता है न काम की सीमा है। बस टारगेट पकड़ा देते है। पिछले कुछ दिनों से वह बहुत व्यस्त रह रहा है। मन ही मन सोच रहा था, आज खाना खा कर तुरंत सोने चला जाएगा। कल ऑफिस जल्दी जाना है।
नवीन थका हारा घर पहुचा। बड़ी भूख लगी थी। पर हमेशा की तरह मृदुला टीवी के सामने बैठी सीरियल देख रही थी। वह टीवी देखने में ऐसी व्यस्त थी। जैसे उसे नवीन की उपस्थिती का एहसास ही न हो। नवीन ने परेशान हो कर माला को आवाज़ देते हुए खाना लगाने कहा। माला उसकी पत्नी के साथ दहेज में आई थी। माला ही घर का सारा काम संभालती थी। चाहता तो था वह मृदुला को आवाज़ देना, पर उसके तीखी बातों का सामना करने की ताकत अभी उसमें नहीं थी। कभी-कभी उसकी बड़ी चाहत होती, उसके मित्रों की पत्नियों की तरह मृदुला उस के लिए कुछ बनाए और प्यार से खिलाये। आफिस से लौटने पर दरवाजा खोल उसके गले से लिपट जाए। पर ऐसी उसकी किस्मत कहाँ?
मृदुला से विवाह करने का निर्णय उसका ही था। अम्मा ने एक-दो बार कुछ कहने की कोशिश भी की। पर हमेशा की तरह पापा ने उस पर ध्यान ही नहीं दिया। नवीन को आज भी याद है। अम्मा ने कहा था- धन नहीं गुण देख बेटा।

अपनी शादी के लिए, पापा के साथ न जाने कितनी लड़कियां उसने देखीं था। उसे सभी में कुछ न कुछ नुक्स नज़र आता। पापा उसकी ऊंची पसंद की तारीफ करते। मृदुला को देखने जब वह पहुँचा। बिना लाग लपेट के होनेवाले ससुर जी ने बात शुरू की। उन्होंने बताया, निर्मला बड़े लाड़ में पली है और वे उसके दहेज में किसी तरह कमी नहीं करना चाहतें है। उनके बताए रकम और सामानों के लिस्ट को देखते हुए नवीन ने निर्णय लेने में देर नहीं की।

पहली बार देखने पर उसे बिलकुल शांत स्वभाव की मृदुला तुरंत पसंद आ गई। यह तो उसे बाद में समझ आया कि यह तूफान के पहले की शांति थी। होनेवाली स्मार्ट सासु ने दहेज में ‘आया’ माला को भेजने की बात कह कर उसे गदगद कर दिया। माला की सारी ज़िम्मेदारी और तंख्वाह ससुराल वालों की ज़िम्मेदारी थी।
मृदुला थोड़ी मोटी, स्वस्थ गालोंवाली श्यामल सुंदरी थी। हाँ, नाक थोड़ी दबी और आगे से फैली थी। उसका मोटा होना नवीन के पापा को भला लग रहा था। दरअसल, खाते-पीते घर की स्वस्थ पुत्री, अति मोटे नवीन के सामने दुबली ही लग रही थी। और उसकी पसरी नाक पिता के वैभव के चमक में नवीन को नज़र ही नहीं आ रही थी। नवीन खाने-पीने का भरपूर शौकीन था। अपनी कमाई का भरपूर प्रभाव उसके सेहत पर नज़र आता था। इस मोटापे ने उसके काले रंगरूप को और बदसूरत बना दिया था। ठुड्डी ने नीचे तह दर तह जमे मोटापा गले तक फैला था।
मृदुला के लिए पिता-पुत्र ने सहमति दे दी। वहाँ से लौट पापा नें बड़े दर्प से अम्मा को सुनाते हुए कहा – मुझे पता था कि नवीन को उसके ओहदे के अनुसार पत्नी और ससुराल जरूर मिलेगा। देखो कैसे भले लोग है। मुँह खोलने की नौबत ही नहीं आने दिया लड़कीवालों ने। बिना माँगे ही घर भरने के लिए तैयार हैं। दरअसल नवीन के ऊँचे पद और बहुत ऊंची तंख्वाह का पापा को बड़ा अहंकार था पर अम्मा दहेज के खिलाफ थीं।
खाना नहीं लगाते देख नवीन ने फिर माला को आवाज़ दी। टीवी से बिना नज़रें हटाये, मृदुला ने फरमाइश पेश कर दी। आज उसे फ़ैशन मॉल के फूड-कोर्ट से चाट और छोले खाने का मन है। नवीन, मृदुला की रोज़-रोज़ की फरमाइशों से परेशान था। पर वह मरे मन से चुपचाप कार में मृदुला को ले कर माल की ओर बढ़ गया।
मॉल पहुँच कर मृदुला ने उसे कुछ ताज़ी सब्जियाँ और फल लेने कहा, और एक ओर खड़ी हो गई। उसे मृदुला पर बड़ा गुस्सा आ रहा था। पर वह बड़े बेमन से ख़रीदारी करने लगा। तभी सामने लगे बड़े-बड़े आईने में उसने अपने-आप और मृदुला को देखा। रोज़-रोज़ के होटलों के चटपटे भोजन ने उन्हें और गोल-मटोल बना दिया था। मन ही मन सोचने लगा- चलो, कल से माला को घर पर भोजन बनाने कहेगा। हाल में ही डाक्टर ने उन दोनों को वजन कम करने का निर्देश दिया था। अब सेहत पर ध्यान देना जरूरी है।
मृदुला के गुस्से को वह मॉल के कर्मचारियों पर उतारने लगा। हरी-हरी ताज़ी लौकी और तोरई देख कर भी वह झुँझला कर कहने लगा – ये लौकी तो मोटी हैं। मुझे लंबी और पतली लौकी चाहिए। तभी सामने लगे आईने में एक लंबी, छरहरी और आकर्षक महिला को वहाँ के कर्मचारियों को निर्देश देते देखा। चेहरा कुछ जाना-पहचाना लगा, पर कुछ याद नहीं आया। मॉल का कर्मचारी, जो उसकी मदद कर रहा था, उसने बताया, वे यहाँ के मालिक की पत्नी है। बड़े अच्छे स्वभाव की हैं। उनके प्रयास से बहुत कम समय में ही मॉल ने बहुत तरक्की कर ली है।
बड़ी देर तक वह सब्जियों की ख़रीदारी में उलझा रहा, पर उसे कुछ ठीक से समझ ही नहीं आ रहा था। तभी पीछे से किसी महिला की मीठी आवाज़ आई। नवीन ने आईने में ही देखा ,उसकी मदद कर रहे कर्मचारी को उसी महिला ने आवाज़ देता हुए कहा – ये लंबी, मोटी, पतली में ही उलझे रह जायेंग। तुम दूसरे ग्राहकों की भी मदद करो। वह हतप्रभ रह गया। आवाज़ सुनते ही उसे सब याद आ गया। यह तो वीणा थी। उसके विवाह की बात वीणा से चली थी। उसे वीणा पसंद भी आ गई थी। नवीन ने उससे फोन पर बातें भी की थीं। दहेज की रकम और सामानों का लिस्ट देख वीणा के पिता ने असमर्थता जताई। नाराज़ हो कर उसके पापा ने बात रोक दी। चिढ़ कर, झूठमूठ उसके पापा ने वीणा के पापा को फोन पर कह दिया- आपकी लड़की थोड़ी मोटी और छोटी है। हमें लंबी और पतली बहू चाहिए।   हमें आपकी लड़की पसंद नहीं है।
नवीन आईने में कभी वीणा और कभी मृदुला को देखता रह गया। उसे लगा आईना उसे मुँह चिढ़ा रहा है। आज उसे अम्मा की बात बड़ी याद आ रही थी- “ धन नहीं गुण देखो बेटा”