Tag: हवा
चराग़
हवा पानी
जब सुना था पानी बिकेगा बोतलों में।
सोंचा था कौन ख़रीदेगा ?
प्यास बुझाता दरिया का पानी,
सांसे महकाती दरख़्तों से गुजरती हवा,
आज बिक रहे हैं करोड़ों-अरबों में।
पानी आज शर्म से पानी पानी है।
खामोशी में डूबे बयार की अब शर्माने की बारी है।
बोतल में बंद हवा-पानी प्राण दायिनी बन गई है।
इनके गुलाम रूह अब आजादी पाएंगे कैसे?
ज़िंदगी के रंग -211
आज – २२ मार्च, जनता कर्फ़्यू
आज सुबह बॉलकोनी में बैठ कर चिड़ियों की मीठा कलरव सुनाई दिया
आस-पास शोर कोलाहल नहीं.
यह खो जाता था हर दिन हम सब के बनाए शोर में.
आसमान कुछ ज़्यादा नील लगा .
धुआँ-धूल के मटमैलापन से मुक्त .
हवा- फ़िज़ा हल्की और सुहावनी लगी. पेट्रोल-डीज़ल के गंध से आजाद.
दुनिया बड़ी बदली-बदली सहज-सुहावनी, स्वाभाविक लगी.
बड़ी तेज़ी से तरक़्क़ी करने और आगे बढ़ने का बड़ा मोल चुका रहें हैं हम सब,
यह समझ आया.

साथ अौर गुलाबी डूबती शाम
गुलाबी डूबती शाम.
थोड़ी गरमाहट लिए हवा में
सागर के खारेपन की ख़ुशबू.
सुनहरे पलों की ….
यादों की आती-जाती लहरें.
नीले, उफनते सागर का किनारा.
ललाट पर उभर आए नमकीन पसीने की बूँदें.
आँखों से रिस आए खारे आँसू और
चेहरे पर सर पटकती लहरों के नमकीन छींटे.
सब नमकीन क्यों?
पहले जब हम यहाँ साथ आए थे.
तब हो ऐसा नहीं लगा था .
क्या दिल ग़मगिन होने पर सब
नमकीन…..खारा सा लगता है?
अपने जैसा
उखड़ा-उखड़ा नाराज़ मौसम
बिखरी बेचैन हवाएँ
सर पटकती सी .
कभी-कभी अपनी सी लगने लगतीं हैं.

यह बयार
यह बयार गजब ढातीं हैं
कभी बुझती राख की चिंगारी को हवा दे
आग बना देतीं है।
दिल आ जाये तो , खेल-खेल में
जलते रौशन दीप अौ शमा बुझ देती है
हौसला
तेल खत्म होते दिये की धीमी लौ की पलकें झपकने लगी,
हवा के झोंके से लौ लहराया
अौर फिर
पूरी ताकत से जलने की कोशिश में……
धधका …..तेज़ जला…. अौर आँखें बंद कर ली।
बस रह गई धुँए की उठती लकीरें अौर पीछे की दीवार पर कालिख के दाग।
तभी पूरब से सूरज की पहली किरण झाँकीं।
शायद दीप के हौसले को सलाम करती सी।
जिंदगी थी खुली किताब
जिंदगी थी खुली किताब,
हवा के झोकों से फङफङाती ।
आज खोजने पर भी खो गये
पन्ने वापस नहीं मिलते।
शायद इसलिये लोग कहते थे-
लिफाफे में बंद कर लो अपनी तमाम जिन्दगी,
खुली किताबों के अक्सर पन्नें उड़ जाया करते है ।
You must be logged in to post a comment.