मोल-अनमोल

दूर थे बादल और कहीं ना था साया।

बस था तपते सूरज का साथ।,

कहा सूरज ने – ग़लत छोड़ आगे नहीं बढ़ोगे,

तो सही साथ पाओगे कैसे?

जहाँ मोल ना हो, वहाँ से जाओगे नहीं,

तब अपना मोल जान पाओगे कैसे?

सोना मिट्टी में दबा, मिट्टी के मोल रहता हैं।

मिट्टी का साथ छोड़ सोना और हीरा

अनमोल हो जाता है।

Psychological fact – knowing own

self-worth is healing and life changing.

Self-worth is the core of our selves.

बे-लौस मोहब्बत

चाँद को रोशन

करता है सूरज,

ख़ुद को जला-तपा कर,

अनंत काल से ।

क्या इंतज़ार है उसे,

कभी तो मिलन होगा?

नहीं, आफ़ताब को मालूम,

मिलन नहीं होगा कभी।

फिर भी जल रहा है…….

बे-लौस, निस्वार्थ मोहब्बत में ।

रौशनी

रौशनी

सूरज डूबेगा नहीं,

तब निकलेगा कैसे?

चाँद अधूरा नहीं होगा,

तब पूरा कैसे होगा?

अँधेरा नहीं होगा,

तब रौशनी का मोल कैसे होगा?

अमावस नहीं होगा,

तब पूर्णिमा कैसे आएगी।

यही है ज़िंदगी।

इसलिय ग़र चमक कम हो,

रौशनी कम लगे।

बिना डरे इंतज़ार करो।

फिर रौशन होगी ज़िंदगी।

कोशिश

सूरज रोज़ निकलता है!

कोशिश मायने रखती है।

परिपूर्ण मत बनो,

वास्तविक बनो।

मान कर चलो कि ज़िंदगी

में अच्छा…

सबसे अच्छा समय

अभी आना बाकी है।

सूरज

चढ़ते सूरज के कई हैं उपासक,

पर वह है डूबता अकेला।

जलते शोले सा तपता आफ़ताब हर रोज़ डूबता है

फिर लौट आने को।

इक रोज़ आफ़ताब से पूछा –

रोज़ डूबते हो ,

फिर अगले रोज़

क्यों निकल आते हो?

कहा आफ़ताब ने –

इस इंतज़ार में,

कभी तो कोई डूबने से

बचाने आएगा।

ज़हन

अर्श….आसमान में चमकते आफ़ताब की तपिश और

महताब की मोम सी चाँदनी

ज़हन को जज़्बाती बना देते हैं.

सूरज और चाँद की

एक दूसरे को पाने की यह जद्दोजहद,

कभी मिलन  नहीं होगा,

यह जान कर भी एक दूसरे को पाने का

ख़्याल  इनके रूह से जाती क्यों नहीं?

 

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अर्थ – 

अर्श-आसमान।

आफ़ताब- सूरज।

महताब- चाँद।

ज़हन – दिमाग़।

 

शाम

चिड़ियों की चहक सहर…सवेरा… ले कर आती है.

 नीड़ को लौटते परिंदे शाम को ख़ुशनुमा बनाते हैं.

ढलते सूरज से रंग उधार लिए सिंदूरी शाम चुपके से ढल जाती.

फिर निकल आता है शाम का सितारा.

पर यादों की वह भीगी शाम उधार हीं रह जाती है,

भीगीं आँखों के साथ.

सूरज ङूबने के बाद

सूरज ङूबने के बाद

क्षितिज़ के ईशान कोण पर

दमकता है एक सितारा…..

शाम का सितारा !

रौशन क़ुतबी सितारा

 ध्रुव तारा…

सूरज डूब जाए तब भी,

अटल और दिव्यमान रहने का देता हुआ संदेश.

जागता रहा चाँद

जागता रहा चाँद सारी रात साथ हमारे.

पूछा हमने – सोने क्यों नहीं जाते?

कहा उसने- जल्दी हीं ढल जाऊँगा.

अभी तो साथ निभाने दो.

फिर सवाल किया चाँद ने –

क्या तपते, रौशन सूरज के साथ ऐसे नज़रें मिला सकोगी?

अपने दर्द-ए-दिल औ राज बाँट सकोगी?

आधा चाँद ने अपनी आधी औ तिरछी मुस्कान के साथ

शीतल चाँदनी छिटका कर कहा -फ़िक्र ना करो,

रात के हमराही हैं हमदोनों.

कितनों के….कितनी हीं जागती रातों का राज़दार हूँ मैं.

सूरज

थका हरा सूरज रोज़ ढल जाता है.

अगले दिन हौसले से फिर रौशन सवेरा ले कर आता है.

कभी बादलो में घिर जाता है.

फिर वही उजाला ले कर वापस आता है.

ज़िंदगी भी ऐसी हीं है.

बस वही सबक़ सीख लेना है.

पीड़ा में डूब, ढल कर, दर्द के बादल से निकल कर जीना है.

यही जीवन का मूल मंत्र है.