तराशते रहें ख़्वाबों को,
कतरते रहे अरमानों को.
काटते-छाँटते रहें ख़्वाहिशों को.
जब अक़्स पूरा हुआ,
मुकम्मल हुईं तमन्नाएँ,
साथ और हाथ छूट चुका था.
सच है …..
सभी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता,
किसी को जमीं,
किसी को आसमाँ नहीं मिलता.
तराशते रहें ख़्वाबों को,
कतरते रहे अरमानों को.
काटते-छाँटते रहें ख़्वाहिशों को.
जब अक़्स पूरा हुआ,
मुकम्मल हुईं तमन्नाएँ,
साथ और हाथ छूट चुका था.
सच है …..
सभी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता,
किसी को जमीं,
किसी को आसमाँ नहीं मिलता.
सागर के दिल पर तिरती- तैरती नावें,
याद दिलातीं हैं – बचपन की,
बारिश अौर अपने हीं लिखे पन्नों से काग़ज़ के बने नाव।
नहीं भूले कागज़ के नाव बनाना,
पर अब ङूबे हैं जिंदगी-ए-दरिया के तूफान-ए-भँवर में।
तब भय न था कि गल जायेगी काग़ज की कश्ती।
अब समझदार माँझी
कश्ती को दरिया के तूफ़ाँ,लहरों से बचा
तलाशता है सुकून-ए-साहिल।
दुनिया में होङ लगी है आगे जाने की…
किसी भी तरह सबसे आगे जाने की।
कोई ना कोई तो आगे होगा हीं।
हम आज जहाँ हैं,
वहाँ पहले कोई अौर होगा….. उससे भी पहले कोई अौर।
ज़िंदगी सीधी नहीं एक सर्कल में चलती है।
जैसे यह दुनिया गोल है।
ज़िंदगी का यह अरमान, ख़्वाब –
सबसे आगे रहने का, सबसे आगे बढ़ने का……
क्या इस होड़ से अच्छा नहीं है –
सबसे अच्छा करने का।
Image courtesy- google.
The true mark of maturity is when somebody hurts you and you try to understand their situation instead of trying to hurt them back.
कई तरह के लोगों को देखा है।
कुछ तो खोए रहते हैं अपने आप में, कुछ अपने दर्द में।
पर बीमार अौर खतरनाक वे हैं जिन्हें मजा आता है,
दूसरों को बिन कारण दर्द और तकलीफ पहुंचाने में।
सबसे सही संतुलित कौन है?
ऐसे भी लोगों को देखा है,
जो चोट खा कर भी चोट नहीं करते।
आघात के बदले प्रतिघात नहीं करते।
क्योंकि
वे पहले दूसरे की मनःस्थिति को समझने की कोशिश करते हैं।
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