अफ़सोस क्यों, अगर आज क़ैद में है ज़िंदगी?
जब आज़ाद थे तब तो विचारा नहीं.
अब तो सोंचने-विचारने का समय मिल गया है.
अगर जीवन चाहिये,
तब धरा और प्रकृति का सम्मान करना होगा.
हमें इसकी ज़रूरत है.
यह तो हमारे बिना भी पूर्ण है.

अफ़सोस क्यों, अगर आज क़ैद में है ज़िंदगी?
जब आज़ाद थे तब तो विचारा नहीं.
अब तो सोंचने-विचारने का समय मिल गया है.
अगर जीवन चाहिये,
तब धरा और प्रकृति का सम्मान करना होगा.
हमें इसकी ज़रूरत है.
यह तो हमारे बिना भी पूर्ण है.
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