जो सोन्धी सी ख़ुशबू बिखेर जाती है।
जो मेरी बालकोनी की फ़र्श आईना बना
मेरा अक्स अपने वजूद में झलका जाती है।
Topic- YourQuote
जो सोन्धी सी ख़ुशबू बिखेर जाती है।
जो मेरी बालकोनी की फ़र्श आईना बना
मेरा अक्स अपने वजूद में झलका जाती है।
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मेरे वजूद का एक हिस्सा
कहीं पीछे छूट गया है,
बिना क़र्ज़ अदा किए
छोड़ जानेवाले के साथ।
अपने हिस्से की जिम्मदारियों
के क़र्ज़ उतारते उतारते
ज़िंदगी में आगे बढ़ गई हूँ ।
मगर ज़िंदगी का ब्याज
ख़त्म होता नहीं।
Topic by -YourQuote
कुछ उलझा उलझा ,
कुछ रूठा रूठा सा है वजूद अपना
ख़ुद को ख़ुद से याद करूँ कैसे ?
करना है ख़ुद को ख़ुद से आज़ाद .
करुँ कैसे ?
बड़ा उलझा प्रश्न है.
कभी कभी उठने वाली कसक,
मन की दर्द , पीड़ा , विरह
किसी को समझाऊँ कैसे ?
अपने से, अपने रूह से बात करूँ कैसे ?
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