हमें जलाने की,
बुझाने की कोशिश ना कर,
हम चराग़ नहीं,
रौशन आफ़ताब हैं।
खुद हीं जल के रौशन होते हैं।
और जहाँ रौशन करते हैं।
हमें जलाने की,
बुझाने की कोशिश ना कर,
हम चराग़ नहीं,
रौशन आफ़ताब हैं।
खुद हीं जल के रौशन होते हैं।
और जहाँ रौशन करते हैं।
किवदन्तियाँ / पौराणिक कहानी- फल्गु नदी गया, बिहार में है। यह ऊपर से सूखी दिखती है। इसके रेत को हटाने से जल मिलता है। कहते है कि राम और सीता यहाँ राजा दशरथ का पिंडदान करने गए। राम समय पर नही आ सके। अतः ब्राह्मण के कहने पर सीता जी ने पिंडदान सम्पन्न कर दिया। राम के आने पर, उनके क्रोध से बचने के लिए फल्गु नदी ने झूठ कहा कि माता सीता ने पिंडदान नहीं किया है। माता सीता ने आक्रोशित होकर फल्गु नदी को अततः सलिला ( रेत के नीचे बहाने का) होने का श्राप दे दिया.
इसे इबादत कहें या डूबना?
ज़र्रे – ज़र्रे को रौशन कर
क्लांत आतिश-ए-आफ़ताब,
अपनी सुनहरी, पिघलती, बहती,
रौशन आग के साथ डूब कर
सितारों और चिराग़ों को रौशन होने का मौका दे जाता है.
अर्थ:
आफ़ताब-सूरज
आतिश – आग
इबादत-पूजा
क्लांत –थका हुआ
जागता रहा चाँद सारी रात साथ हमारे.
पूछा हमने – सोने क्यों नहीं जाते?
कहा उसने- जल्दी हीं ढल जाऊँगा.
अभी तो साथ निभाने दो.
फिर सवाल किया चाँद ने –
क्या तपते, रौशन सूरज के साथ ऐसे नज़रें मिला सकोगी?
अपने दर्द-ए-दिल औ राज बाँट सकोगी?
आधा चाँद ने अपनी आधी औ तिरछी मुस्कान के साथ
शीतल चाँदनी छिटका कर कहा -फ़िक्र ना करो,
रात के हमराही हैं हमदोनों.
कितनों के….कितनी हीं जागती रातों का राज़दार हूँ मैं.
थका हरा सूरज रोज़ ढल जाता है.
अगले दिन हौसले से फिर रौशन सवेरा ले कर आता है.
कभी बादलो में घिर जाता है.
फिर वही उजाला ले कर वापस आता है.
ज़िंदगी भी ऐसी हीं है.
बस वही सबक़ सीख लेना है.
पीड़ा में डूब, ढल कर, दर्द के बादल से निकल कर जीना है.
यही जीवन का मूल मंत्र है.
सूरज ङूबने के बाद
क्षितिज़ के उत्तर में
दमकता है एक सितारा…..
शाम का सितारा,
राह दिखाता,
रौशन क़ुतबी सितारा
यह ध्रुव तारा….
अटल और दिव्यमान रहने के
संदेश के साथ .
यह बयार गजब ढातीं हैं
कभी बुझती राख की चिंगारी को हवा दे
आग बना देतीं है।
दिल आ जाये तो , खेल-खेल में
जलते रौशन दीप अौ शमा बुझ देती है
You must be logged in to post a comment.