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कहते हैं चोट का दर्द टीसता है
सर्द मौसम में.
पर सच यह है कि
सर्द मौसम की गुनगुनी धूप,
बरसाती सूरज की लुकाछिपी की गरमाहट
या जेठ की तपती गर्मी ओढ़ने पर भी
कुछ दर्द बेचैन कर जाती हैं.
दर्द को लफ़्ज़ों में ढाल कर
कभी कभी ही राहत मिलती है.
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जाना जरूरी था,
तो कम से कम इतनी राहत
इतना अजाब तो दे जाते…
आँखों में सैलाब दे जानेवाले,
कैलेंडर के जिन पन्नों के साथ हमारी जिंदगी अटकी है।
उसमें से कुछ तारीखें तो मिटा जाते ।
ये तारीखें चुभती है।
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