कुछ मोहब्बतें
जलतीं-जलातीं हैं।
कुछ अधुरी रह जाती हैं।
कुछ मोहब्बतें अपने
अंदर लौ जलातीं हैं।
जैसे इश्क़ हो
पतंग़े का चराग़ से,
राधा का कृष्ण से
या मीरा का कान्हा से।
कुछ मोहब्बतें
जलतीं-जलातीं हैं।
कुछ अधुरी रह जाती हैं।
कुछ मोहब्बतें अपने
अंदर लौ जलातीं हैं।
जैसे इश्क़ हो
पतंग़े का चराग़ से,
राधा का कृष्ण से
या मीरा का कान्हा से।
अधूरी मुहब्बतों की
दास्ताँ लिखी जाती है।
राधा और कृष्ण,
मीरा और कान्हा को
सब याद करते हैं।
किसे याद है कृष्ण की
आठ पटरानियों और
16 हजार 108 रानियों की?
ना दूरी ना नज़दीकी
रिश्ते बनाती या बिगड़ती है।
वह तो सरसब्ज़ ….सदाबहार
प्रीत और चाहत होती है।
राधा पास थी,
पर अपनी बनी नहीं।
मीरा सदियों दूर थी,
पर कान्हा उनके अपने थे।
शुभ मित्रता दिवस !!!!
शुभ कार्तिक पूर्णिमा !!
कार्तिक पूर्णिमा को देवताओं की दिवाली या देव दिवाली कहा जाता है. कार्तिक पूर्णिमा का त्योहार दीपावली के 15 दिन बाद मनाया जाता है. इस दिन माता गंगा की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है. इस दिन काशी के सभी गंगा घाटों को दीयों की रोशनी से रौशन किया जाता है और कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दिवाली का त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है.
कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा या गंगा स्नान के नाम से भी जाना जाता है। क्योंकि आज के दिन ही भगवान भोलेनाथ ने त्रिपुरासुर नामक महाभयानक असुर का अंत किया था और वे त्रिपुरारी के रूप में पूजित हुए थे।
महाभारत के विनाशकारी युद्ध के बाद आज के दिन पांडवों ने दिवंगत आत्माओं की शांति के लिए स्नान कर दीपदान करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित की थी.
सिख सम्प्रदाय में कार्तिक पूर्णिमा का दिन प्रकाशोत्सव के रूप में मनाया जाता है। क्योंकि इस दिन सिख सम्प्रदाय के संस्थापक गुरू नानक देव का जन्म हुआ था।
कहते है, कार्तिक पूर्णिमा को गोलोक के रासमण्डल में श्री कृष्ण ने श्री राधा का पूजन किया था।
मान्यता है कि, कार्तिक पूर्णिमा को ही देवी तुलसी ने पृथ्वी पर जन्म ग्रहण किया था।
Image courtesy- Aneesh
विष्णु के अष्टम अवतार,
देवकी के आठवें पुत्र,
अष्ट पत्नियाँ– रुक्मणि, जाम्बवन्ती, सत्यभामा,
कालिन्दी, मित्रबिन्दा, सत्या, भद्रा और लक्ष्मण को
राधा को, मीरा को, गोपियों को,
कान्हा क्यों सभी को अच्छे लगते हैं ?
मुरली प्यारी है या मोर मुकुट? या स्वंय केशव?
कोई नहीं जान पाया…..
बस इतना हीं काफी है – वे अच्छे लगतें हैं।
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