श्रम के सैनिक निकल पड़े पैदल, बिना भय के बस एक आस के सहारे – घर पहुँचने के सपने के साथ. ना भोजन, ना पानी, सर पर चिलचिलाती धूप और रात में खुला आसमान और नभ से निहारता चाँद. पर उन अनाम मज़दूरों का क्या जो किसी दुर्घटना के शिकार हो गए. ट्रेन की पटरी पर, रास्ते की गाड़ियों के नीचे? या थकान ने जिनकी साँसें छीन लीं. जो कभी घर नहीं पहुँचें. बस समाचारों में गिनती बन कर रह गए.
जागता रहा चाँद सारी रात साथ हमारे.
पूछा हमने – सोने क्यों नहीं जाते?
कहा उसने- जल्दी हीं ढल जाऊँगा.
अभी तो साथ निभाने दो.
फिर सवाल किया चाँद ने –
क्या तपते, रौशन सूरज के साथ ऐसे नज़रें मिला सकोगी?
अपने दर्द-ए-दिल औ राज बाँट सकोगी?
आधा चाँद ने अपनी आधी औ तिरछी मुस्कान के साथ
शीतल चाँदनी छिटका कर कहा -फ़िक्र ना करो,
रात के हमराही हैं हमदोनों.
कितनों के….कितनी हीं जागती रातों का राज़दार हूँ मैं.
शाम के धुँधलके में एक बड़ा चमगादड़,
अपने विशाल पंख फैलाए,
इतराता, उड़ता हुआ ऐसे गुज़रा,
जैसे रातों का राजा हो …..
कहा हमने – बच्चू यहाँ हो इसलिए इतरा रहे हो,
चीन में होते तो सूप के प्याले में मिलते …….
पास के पेड़ पर उलटा लटक कर वह हँसा और बोला-
हम भी कुछ कम तो नहीं.
एक झटके में सारी दुनिया उलट-पलट दी.
अब चमगादड़ का सूप पीनेवालों को
अपनी छोटी-छोटी पैनी आँखों से चिकेन भी चमगादड़ दिखेगा.
हमने खुद जल कर उजाला किया.
अमावास्या की अँधेरी रातों में,
बयार से लङ-झगङ कर…
तुम्हारी ख़ुशियों के लिए सोने सी सुनहरी रोशनी से जगमगाते रहे.
और आज उसी माटी में पड़े हैं…..
उसमें शामिल होने के लिए
जहाँ से जन्म लिया था.
यह थी हमारी एक रात की ज़िंदगी.
क्या तुम अपने को जला कर ख़ुशियाँ बिखेर सकते हो?
कुछ पलों में हीं जिंदगी जी सकते हो?
सीखना है तो यह सीखो।
Image courtesy- Aneesh
पूनम का धृष्ट चाँद बिना पूछे,
बादलों के खुले वातायन से
अपनी चाँदनी को बड़े अधिकार से
सागर पर बिखेर गगन में मुस्कुरा पड़ा .
सागर की लहरों पर बिखर चाँदनी
सागर को अपने पास बुलाने लगी.
लहरें ऊँचाइयों को छूने की कोशिश में
ज्वार बन तट पर सर पटकने लगे .
पर हमेशा की तरह यह मिलन भी
अधूरा रह गया.
थका चाँद पीला पड़ गया .
चाँदनी लुप्त हो गई .
सागर शांत हो गया .
पूर्णिमा की रात बीत चुकी थी .
पूरब से सूरज झाँकने लगा था .