मैं क्यों आई धरा पर? #गंगाजयंती/गंगासप्तमी 18 मई

गंगा सप्तमी 18 मई को है। वैशाख मास शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि के दिन गंगा स्वर्ग लोक से भगवान शिव की जटाओं में पहुंची थीं। इसलिए इस दिन को गंगा जयंती या गंगा सप्तमी के रूप में मनाया जाता है।

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हिमालय से लेकर सुन्दरवन तक की यात्रा करती,

पुण्य, सरल, सलिला, मोक्षदायिनी गंगा,

 हमेशा की तरह पहाड़ों से नीचे पहुँची मैदानों का स्पर्श कर हरिद्वार !

कुम्भ की डुबकी में उसे मिला छुअन कोरोना का।

आगे मिले अनगिनत कोरोना शव।

वह तो हमेशा की तरह बहती रही

कोरोना वायरस 

जल पहुँचाती घाट घाट!

जो दिया उसे, वही रही है बाँट!

किनारे बसे हर घर, औद्योगिक नगर, हर खेत और पशु को।

 

शुद्ध, प्राणवायु से भरी गंगा भी हार गई है मानवों से।

सैंकड़ों शवों को साथ ले कर जाती गंगा।

हम भूल रहें हैं, वह अपने पास कुछ भी  रखती नहीं।

अनवरत बहती है और पहुँचाती रही है जल।

अब वही पहुँचाएगी जो इंसानों ने उसे दिया।

कहते हैं गंगा मां  के पूजन  से  भाग्य खुल जाते हैं।

पर उसके भाग्य का क्या? 

  ख़्याल उसे आता होगा मगर।

स्वर्ग छोड़ मैं क्यों आई धरा पर ?

जिंदगी के रंग – 216

जीवन एक यात्रा है, हम सब मुसाफिर हैं।

चलते जाना है।

किसकी मंजिल मालूम नहीं कहां है।

मिलना एक इत्तेफाक है।

जाने जिंदगी के किस मोड़ पर कब कौन मिल जाए

और कब कहां बिछड़ जाए।

ना जाने कब कोई सफर अधूरा छोड़ चला जाए।

इस धूप- छाँव से सफर में

जब मरहम लगाने वाला अपना सा कोई मिल जाता है।

तब दोस्तों का एक कारवां बन जाता है।

कुछ लोगों से मिलकर लगता है,

जैसे वे जाने पहचाने हैं।

जिंदगी का सफर है इस में चलते जाना।

 मिलना बिछड़ना तो लगा ही रहेगा।

जीवन एक यात्रा है, हम सब मुसाफिर हैं।

बस चलते जाना है।

 

 

यह कविता आदरणीय मनोरमा जी अौर  अनिल जी को समर्पित है. जो किसी कारणवश दूसरे शहर में शिफ्ट हो रहे हैं.

This poem is dedicated to respected  Anil ji and Manorama ji on their farewell. 

दिनों की गिनती – लॉकङाउन का 50वाँ दिन

जिंदगी के पचास दिन बीत गये….कम हो गये।

बिना कुछ कहे-सुने, चुपके से एक शाम अौर ढल गई।

दिनों की गिनती शायद हीं कभी इतनी शिद्दत से की होगी।

यह भी एक यात्रा है।

मालूम नहीं कितनी लंबी।

कितने सबकों…पाठों के साथ।

 ना शिकवा है ना गिला है।

पर यात्रा जारी है।

आशा भरे  नये दिन, नई सुबह के इंतज़ार के साथ।

 

Image Courtesy- Chandni Sahay

पड़ाव

जब भी कहीं डेरा डालना चाहा.

रुकना चाहा.

ज़िंदगी आ कर कानों में धीरे से कह गई-

यह भी बस एक पड़ाव है…

ठहराव है जीवन यात्रा का.

अभी आगे बढ़ना है,

चलते जाना है. बस चलते जाना है.

 

image courtesy – Aneesh

हमारी यात्रा -यूनियन बैंक शताब्दी वर्ष

यह कविता मेरी बेटी चाँदनी सहाय, अधिकारी, यूनियन बैंक की रचना है. उसे इसके लिए यूनियन बैंक , हिंदी कविता प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार मिला है. जो मेरे लिये असीम गर्व की बात है।

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राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के कर कमलों से उद्घाटतृित हो,

खङे हैं  अटल-अचल हम एक सदी से।

एकता, अपनापन अौर सेवा-भाव से।

देश अौर देशवासियों  की  ईकोनॉमी संम्भाले का दायित्व निभाते।

दृष्टिबधितों को ए टी एम  ,

सिक्किम नाथूलाल में सबसे ऊँचाई पर ए टी एम जैसी जिम्मेदारियाँ  निभा रहें हैं।

आज हम एक शताब्दी ….. 100 वीं वर्षगांठ मना रहें हैं!!

इस लंबी यात्रा में ना जाने कितनी उपलब्धियाँ हासिल की।

पूँजी बाजार में शामिल हुए, टेक्नो-सेवी बैंक होने की ख्याति पाई,

युमोबाइल, टेब्यूलस बैंकिंग, यूनियन सेल्फी,

आधुनिक बैंकिंग विचारधारा वाला एक अग्रणी बैंक बन,

डिमोनीटाईजेशन के समय रात दिन एक कर  सम्मान अर्जित किया।

पहले-पहल हिंदी में वार्षिक रिपोर्ट बनाईं,

ऐसे ना जाने, कितनी मोतियाँ हैं हमारे उपल्बधियों की माला में।

अखंडता, शक्ति और साझेदारी का प्रतिनिधित्व करती हुई,

हमारे यूनियन बैंक इंटरलॉक प्रतीक की तरह।

आज हम सेंटेनरी…… 100 वीं सालगिरह मना रहें हैं!!!!

सबों को बधाई अौर आभार!

राष्ट्र सेवा कर राष्ट्रपति पुरस्कार पाया।

यह प्यार, यह सम्मान  बना रहे …..

अच्छे लोग अच्छा बैंक,

“बैंक के साथ अच्छे लोग” की भावना बनी रहे…….

कामना है  सभी स्वस्थ रहें, सुखी रहें –

“सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयः।”

Image courtesy- Chandni Sahay.

जिन्दगी के रंग — 39

जीवन की परिभाषा 

और जीवन  मेंअपनी  परिभाषा

 ढूँढते ढूँढते   कई परिभाषाएँ बनी,  

बनती गई……  और  कई मिटी भी ……

पर यात्रा जारी हैँ 

किसी  शाश्वत और सम्पूर्ण 

परिभाषा  की खोज में …….

पाषण युग Stone age

NEWS 12 oct 2017 –   Body of newborn girl found in hospital toilet.
The patient informed hospital authorities, who alerted the police. Soon, a team from the Bundgarden police station reached the spot. Later, the newborn’s body was sent for post-mortem.

 

पाषण युग से आज तक की

लम्बी प्रगति यात्रा

 पूरी करने में ना जाने कितनी सादियाँ लगी.

पर कुछ क्रुर पाषाण हृदय वाले

 पल भर में वापस वहीँ कैसे लौट जाते है ?

उनकी तुलना पशुओं से भी नहीँ कर सकते

क्योंकि वे भी ऐसा  जघन्य कुकर्म नहीँ करते .