सोन्धी-सोन्धी ख़ुश्बू बिखर गई फ़िज़ा में.
कहीं बादल बरसा था या आँखें किसी की?
कहा था –
ना कुरेदो अतीत की यादों को.
माज़ी…..अतीत के ख़ाक में भी बड़ी आग होती है.
सोन्धी-सोन्धी ख़ुश्बू बिखर गई फ़िज़ा में.
कहीं बादल बरसा था या आँखें किसी की?
कहा था –
ना कुरेदो अतीत की यादों को.
माज़ी…..अतीत के ख़ाक में भी बड़ी आग होती है.