किसी और की बातों
और राय को बोझ
ना बनने दो।
सुन सब की लो।
पर सुनो अपने दिल की।
किसी और की बातों
और राय को बोझ
ना बनने दो।
सुन सब की लो।
पर सुनो अपने दिल की।
अक्सर लोगों ने कहा –
पुरानी बातें ना दोहराओ ।
पर क्यों?
हम सब रामायण, गीता और महाभारत दोहरातें हैं,
समझ और ज्ञान पाने, ग़लत बातों
को ग़लत बताने के लिए।
अनुचित करने वाले अपनी त्रुटि
छुपाने के लिए ये सब कहते हैं!
ग़लतियाँ करने से क्यों नहीं डरते हैं।
ऐसे लोगों को ग़लत हरकतें
कर नई बातों की उम्मीद क्यों?
Logorrhoea / logorrhoea/ press speech is a communication disorder that causes excessive wordiness and repetitiveness, which can cause incoherency. Logorrhea is sometimes classified as a mental illness, though it is more commonly classified as a symptom of mental illness or brain injury.
बेवजह, बेकार बातें क्यों सुननी?
बे-सबब बातें क्यों बढ़ानी?
ऐसा क्यों कि बातें कुछ हो, बयाँ कुछ अौर हो?
अच्छी बातों, सच्ची बातों की कमी है क्या?
मुख़्तसर सी बात…छोटी सी बात
बस इतनी है –
बतकही नहीं, चाहिए मीठी गुफ़्तगू ।
लॉगोरिया / लॉगोरिया / बोलचाल की समस्या है, जैसे ज्यादा बोलना, बातें दोहराना । लॉगोरिया को कभी-कभी मानसिक बीमारी के रुप में भी देखा जाता है। यह मानसिक बीमारी, किसी दवा से या मस्तिष्क की चोट के कारण भी हो सकती है।
कहते हैं जो बीत गई वो बात गई.
उन्हें जाने देना चाहिए !
पर सच तो है कि बहुत सी बीती बातें हीं
ठहर जातीं है बीत जाने पर भी,
जिद्द की तरह !!
बातों का क्या है – कही, अनकही,
कुछ अधूरी, कुछ पूरी. अटकी रहतीं हैं,
घर बना कर ज़ेहन के किसी कोने में.
ज़िन्दगी का हिस्सा बन.
जो बीत गई ,
वो बात रह गई ज़िंदगी का हिस्सा बन कर !!!
सूफी परंपरा में ईश्वर को हमेशा प्रेमी के रूप में देखा गया है. उसका दरवाजा केवल उन लोगों के लिए ही खुलता है, जो अपने-आप को उसके प्रेम में खो चुके होते हैं.
हमेशा क़रीब होना हीं सही नही।
बहुत क़रीब से देखने पर पूरे दृश्य को नहीं देखा जा सकता है।
वे धुँधली हो जातीं हैं।
परिदृश्य या घटना का हिस्सा बन कर पूरी बातें नहीं समझी जा सकती हैं.
जैसे चित्र में रह कर चित्र देखा नहीं जा सकता.
थोङे फासले भी मायने रखते हैं।
ज़िंदगी की परेशान घड़ियों में अचानक
किसी की बेहद सरल और सुलझी बातें
गहरी समझ और सुकून दे जातीं हैं, मलहम की तरह।
किसी ने हमसे कहा – किसी से कुछ ना कहो, किसी की ना सुनो !
दिल से निकलने वाली बातें सुनो,
और अपने दिल की करो।
गौर से सुना, पाया……
दिल के धड़कन की संगीत सबसे मधुर अौर सच्ची है।
घंटो बातें करो
या फिर बिलकुल बातें ना हो ,
दोस्ती या सम्बन्धों को,
निभाने का यह तरीक़ा
कुछ समझ नहीं आता .
क्या कोई बता सकता है ?
क्यों करते हैं लोग ऐसा ?
ढेरों बातें और यादें बटोरे
गिले-शिकवे की पोटलियाँ समेटे
इंतज़ार में, राहों में पलके बिछाये बैठे थे …..
उनका आना, नज़रें उठाना और गिराना
सारे ल़फ्ज ….अल्फाज़ चुरा ले गया।
दिल से निकले
शब्द, लफ्ज़, बातें वो जादू कर सकते हैं,
जो शायद विधाता रचित
सुंदरतम चेहरा नहीं कर सकता।
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