ग़र कोई मन बना लें, ग़लत ठहराने का।
दावा करना छोड़
बढ़ जाओ मंज़िल की ओर।
कभी ये ग़लत कभी वो ग़लत
कभी सब ग़लत मानने वाले
ग़लत-फ़हमियों के बाज़ार सजाते हैं।
फ़ासले बढ़ाते है।
ख़ुद वे ग़लत हो सकते हैं,
यह कभी मान नहीं पाते हैं।
ग़र कोई मन बना लें, ग़लत ठहराने का।
दावा करना छोड़
बढ़ जाओ मंज़िल की ओर।
कभी ये ग़लत कभी वो ग़लत
कभी सब ग़लत मानने वाले
ग़लत-फ़हमियों के बाज़ार सजाते हैं।
फ़ासले बढ़ाते है।
ख़ुद वे ग़लत हो सकते हैं,
यह कभी मान नहीं पाते हैं।
कहते हैं,
शादियाँ बिकने लगीं हैं।
जब देखने वाले ख़रीदार बैठे है,
ज़रूर बिकेंगी।
टिकें या ना टिकें,
क्या फ़र्क़ पड़ता है?
नई हुईं फिर बिकेंगी।
शादियों में, दिखावे के
बाज़ार बिकेंगे।
नई-नई अदायें बिकेंगी।
शो बिज़नेस की दुनिया है।
सिंपल लिविंग हाई थिंकिंग,
सादा जीवन उच्च विचार
का नहीं है बाज़ार।
ग़र हो निहारने वाली हुजूम,
तो क्या ग़म है?
शादियाँ बिकेंगी।
टूट कर मुहब्बत करो
या मुहब्बत करके टूटो.
यादों और ख़्वाबों के बीच तकरार चलता रहेगा.
रात और दिन का क़रार बिखरता रहेगा.
कभी आँसू कभी मुस्कुराहट का बाज़ार सजता रहेगा.
यह शीशे… काँच की नगरी है.
टूटना – बिखरना, चुभना तो लगा हीं रहेगा.
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