जब सच्चा अक्स देखना या दिखाना हो,
तब आईना याद आता है।
पर सब भूल जाते हैं दर्पण तो छल करता है।
वह हमेशा उलटी छवि दिखाता है।
इंसानों की फितरत भी ऐसी होती है शायद ।
पर अंतर्मन….अपने मन का आंतरिक दर्पण क्या कहता है?
वह तो कभी छल नहीं करता।
साँस के साथ बुनी गई जो ज़िंदगी,
वह अस्तित्व खो गया क्षितिज के चक्रव्यूह में.
अब अक्सर क्षितिज के दर्पण में
किसी का चेहरा ढूँढते-ढूँढते रात हो जाती है.
और टिमटिमाते सितारों के साथ फिर वही खोज शुरू हो जाती है –
अपने सितारे की खोज!!!!
Image courtesy- Aneesh
बंद आँखें ….
कंधे पर ले बोझ ,
जलते अौर चलते जाना जीवन नहीं !!!
दिल की धङकने
और अपनी अंदर जल रही लौ
का दर्पण,
खुले पंख ,
खुशी अौर दर्द के साथ जीना ….
….उङना,
ऊपर उठना सीखा देती है!!!!!
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