यह तो वक़्त वक़्त की बात है।
टिकना हमारी फ़ितरत नहीं।
हम तो बहाव ही ज़िंदगी की।
ना तुम एक से रहते हो ना हम।
परिवर्तन तो संसार का नियम है।
पढ़ लो दरिया में
बहते पानी की तहरीरों को।
बात बस इतनी है –
बुरे वक़्त और दर्द में लगता है
युग बीत रहे और
एहसास-ए-वक़्त नहीं रहता
सुख में और इश्क़ में।
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