उन्मुक्त हवा-बयार बंधन में नहीं बँध सकती है।
दरिया में जहाज़ चलना हो,
तो मस्तूल या पाल को साधना होता है।
ख़ुशियाँ चाहिए तब,
नज़र आती दुनिया को नहीं
अपने नज़रिए को साधना होता है।
जो बनते रहें हैं अपने.
कहते हैं पहचान नहीं पाए तुम्हें !
आँखों पर गुमान की पट्टी ऐसी हीं होती है.
अच्छा है अगर लोंग पहले पहचान लें ख़ुद को।
ज़िंदगी के राहों में,
हम ने बख़ूबी पहचान लिया इन्हें!
Image – Aneesh
लोगों के चेहरे देखते देखते ज़िंदगी कट गई।
चेहरे पहचानना अभी तक नहीं आया।
मेरी बातें सुन आईना हँसा और बोला –
मैं तो युगों-युगों से यही करता आ रहा हूँ।
पर मेरा भी यही हाल है।
मनचाहा दिखने के लिए,
लोग रोज़ नये-नये चेहरे बदलते रहते हैं।
सौ चेहरे गढ़,
कभी मुखौटे लगा, रिश्वत देते रहते हैं।
पल-पल रंग बदलते रहते हैं।
चेहरे में चेहरा ढूँढने और पहचानने की कोशिश छोड़ो।
अपने दिल की सुनो,
दूसरों को नहीं अपने आप को देखो।
दुनिया में होङ लगी है आगे जाने की…
किसी भी तरह सबसे आगे जाने की।
कोई ना कोई तो आगे होगा हीं।
हम आज जहाँ हैं,
वहाँ पहले कोई अौर होगा….. उससे भी पहले कोई अौर।
ज़िंदगी सीधी नहीं एक सर्कल में चलती है।
जैसे यह दुनिया गोल है।
ज़िंदगी का यह अरमान, ख़्वाब –
सबसे आगे रहने का, सबसे आगे बढ़ने का……
क्या इस होड़ से अच्छा नहीं है –
सबसे अच्छा करने का।
Image courtesy- google.
जब भी कहीं डेरा डालना चाहा.
रुकना चाहा.
ज़िंदगी आ कर कानों में धीरे से कह गई-
यह भी बस एक पड़ाव है…
ठहराव है जीवन यात्रा का.
अभी आगे बढ़ना है,
चलते जाना है. बस चलते जाना है.
image courtesy – Aneesh
थका हरा सूरज रोज़ ढल जाता है.
अगले दिन हौसले से फिर रौशन सवेरा ले कर आता है.
कभी बादलो में घिर जाता है.
फिर वही उजाला ले कर वापस आता है.
ज़िंदगी भी ऐसी हीं है.
बस वही सबक़ सीख लेना है.
पीड़ा में डूब, ढल कर, दर्द के बादल से निकल कर जीना है.
यही जीवन का मूल मंत्र है.