Tag: चाँदनी
चाँद और सितारे
जब अपनी चाँदी सी सुकून भरी चाँदनी भर देता हैं चाँद,
खुली खिड़कियों से कमरे में।
तब हम अक्सर गुफ़्तगू करते हैं चाँद और सितारों से।
वातायन से झाँकता चाँद हँस कर कहता है,
दूरियाँ-नज़दीकियाँ तो मन की बातें है।
कई बार लोग पास हो कर भी पास नहीं होते।
रिश्तों में बस शीतलता, सुकून और शांति होनी चाहिए।
देखो मुझे, जीवन में घटते-बढ़ते तो हम सब रहते हैं।
मुस्कुरा कर सितारों ने कहा हैं-
याद है क्या तुम्हें?
हमें टूटते देख दुनिया अपनी तमन्नाएँ औ ख़्वाहिशें
पूरी होने की दुआएँ माँगती है, हमारा टूटना नहीं देखती।
फिर भी हम टिमटिमाते-खिलखिलाते रहते हैं।
कभी ना कभी सभी टूटते औ आधे-अधूरे होते रहतें हैं।
बस टिमटिमाते रहो, रौशनी और ख़ुशियाँ बाँटते रहो।
क्योंकि सभी मुस्कुराहटों और रौशनी की खोज़ में है।
ज़हन
अर्श….आसमान में चमकते आफ़ताब की तपिश और
महताब की मोम सी चाँदनी
ज़हन को जज़्बाती बना देते हैं.
सूरज और चाँद की
एक दूसरे को पाने की यह जद्दोजहद,
कभी मिलन नहीं होगा,
यह जान कर भी एक दूसरे को पाने का
ख़्याल इनके रूह से जाती क्यों नहीं?
****
अर्थ –
अर्श-आसमान।
आफ़ताब- सूरज।
महताब- चाँद।
ज़हन – दिमाग़।
जागता रहा चाँद
जागता रहा चाँद सारी रात साथ हमारे.
पूछा हमने – सोने क्यों नहीं जाते?
कहा उसने- जल्दी हीं ढल जाऊँगा.
अभी तो साथ निभाने दो.
फिर सवाल किया चाँद ने –
क्या तपते, रौशन सूरज के साथ ऐसे नज़रें मिला सकोगी?
अपने दर्द-ए-दिल औ राज बाँट सकोगी?
आधा चाँद ने अपनी आधी औ तिरछी मुस्कान के साथ
शीतल चाँदनी छिटका कर कहा -फ़िक्र ना करो,
रात के हमराही हैं हमदोनों.
कितनों के….कितनी हीं जागती रातों का राज़दार हूँ मैं.
प्रतिपदा का चाँद
प्रतिपदा का कमज़ोर, क्षीण चाँद
थका हारा सा अपनी
पीली अल्प सी चाँदनी ,
पलाश के आग जैसे लाल फूलों पर
बिखेरता हुआ बोला –
बस कुछ दिनो की बात है .
मैं फिर पूर्ण हो जाऊँगा।
मेरी चाँदी सी चाँदनी हर अोर बिखरी होगी .
प्रतिपदा – पक्ष की पहली तिथि।
क्यों चुप है चाँद ?
क्यों आज चुप है चाँद ?
ना जाने कितनी बातों का गवाह
कितने रातों का राज़दार
फ़लक से पल पल का हिसाब रखता,
कभी मुँडेर पर ,
कभी किसी शाख़-ए-गुल को चूमता,
गुलमोहर पर बिखरा कर अपनी चाँदनी अक्सर
थका हुआ मेरी बाहों में सो जाता था.
किस दर्द से बेसबब
चुप है चाँद ?
जिंदगी के रंग -117
मेरे ख्याल में दिल की सच्ची अभिव्यक्ति ही सही लेखन है। यह कविता किसी ब्लॉगर द्वारा की गई सराहना का परिणाम है- Aapki kavitayein bahot hi achi lagti hai hamein!!
The secret of good writing is telling the truth. – Gordon Lish
कुछ जिंदगी की हकीकत, कुछ सपने,
थोङी कल्पनाअों के ताने-बाने
जब शब्दों में ढल कर
अंगुलियों से टपकते हैं पन्ने पर।
तब बनती हैं कविता।
जो अंधेरा हो ना हो फिर चांद अौर बिखरी चाँदनीं दिखाती हैं।
जो लिखे शब्दों से दिल में सच्चा एहसास जगाती हैं।
ऐसे जन्म लेती हैं कविताएँ -कहानियाँ।

धृष्ट चाँद
पूनम का धृष्ट चाँद बिना पूछे,
बादलों के खुले वातायन से
अपनी चाँदनी को बड़े अधिकार से
सागर पर बिखेर गगन में मुस्कुरा पड़ा .
सागर की लहरों पर बिखर चाँदनी
सागर को अपने पास बुलाने लगी.
लहरें ऊँचाइयों को छूने की कोशिश में
ज्वार बन तट पर सर पटकने लगे .
पर हमेशा की तरह यह मिलन भी
अधूरा रह गया.
थका चाँद पीला पड़ गया .
चाँदनी लुप्त हो गई .
सागर शांत हो गया .
पूर्णिमा की रात बीत चुकी थी .
पूरब से सूरज झाँकने लगा था .
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