सारे इत्रों की खुशबू,आज मन्द पड़ गयी…
मिट्टी में बारिश की बूंदे,जो चन्द पड़ गयी…
Unknown
सारे इत्रों की खुशबू,आज मन्द पड़ गयी…
मिट्टी में बारिश की बूंदे,जो चन्द पड़ गयी…
Unknown
खुशबू ने सीखाया बिखरना,
चाँद ने खामोशी।
खुद से गुफ्तगू करना सीखाया निर्झर ने,
ख्वाहिशों ने सीखाया सज़्दा – इबादत करना।
तनहाई, अकेलेपन ने फरियाद, शिकवा
पर
दुनिया के भीङ में भटकते- भटकते भूल जाते हैं सारे तालीम
शायद रियाज़ों की कमी है।
टेढी -मेढी बल खाती पगङंङी, ऊँची- नीची राहें ,
कभी फूलों कभी कांटों के बीच,
तीखे मोड़ भरे जीवन का यह सफ़र
मीठे -खट्टे अनुभव, यादों,
के साथ
एक अौर साल गुज़र गया
कब …..कैसे ….पता हीं नहीं चला।
कभी खुशबू, कभी आँसू साथ निभाते रहे।
पहेली सी है यह जिंदगी।
अभिनंदन नये साल का !!!
मगंलमय,
नव वर्ष की शुभकानायें !!!!
इन दुनियावी रंगों , इत्रों, खुशबू, सुगंध से परे
कोई अौर भी राग-रंग, महक है ,
जो दिल और आत्मा को रंगती हैं
जीवन यात्रा में।
यह खुशबू हमें ले कर चलती रहती है,
प्यार भरे जीवन के अनन्त पथ पर।
बातो में खुशबू
कभी कभी ही महसूस होती है
जैसे कच्चे गुलाबे इत्र की महक हो फैली हर ओर .
यह हवा के झोंके से बिखरती नहीँ
कहीँ गहरे दिल में
खजाने बन जमा हो जाती हैँ .
यादों के गुलाब बन कर .
फिज़ा
में बिखरी खुशबू खिसकती सरकती
ना जाने कब
पास पहुँच कर
गले में बाँहें डाल
अतीत की ओर खीँच ले गई .
किसी के यादों के साये और गुलाबों के बीच ले गई .
हमारे अंदर भी क्या बदलते मौसम हैं ?
क्या कभी बसंत अौर कभी पतझङ होते हैं ?
कभी कभी सुनाई देती है गिरते पत्तों की उदास सरसराहट
या शरद की हिम शीतल खामोशियाँ
अौर कभी बसंत के खिलते फूलों की खुशबू….
ऋतुअों अौर मन का यह रहस्य
बङा अबूझ है………