Tag: इश्क़
चाय, किताबें, इश्क़ और तुम
हाथों में गर्म चाय की प्याली औ हम किताबों में गुम।
हो इश्क़ का तरन्नुम औ यादों में तुम।
तब लबों पर थिरक उठती है तबस्सुम,
और आँखों में अंजुम।
चाय, किताबें, इश्क़ और तुम
इन्ही से मिल बनें हैं हम।
अर्थ
अंजुम – सितारे; तारे।
तरन्नुम – स्वर-माधुर्य, गाना, मधुर गान, लय, अलाप।
शमा के नूर
पूछा किसी ने रूमी से- दरवेश! किस मद में चूर हो?
गोल-गोल झूमते और घूमते लगते शमा के नूर हो।
नृत्य में बेफ़िक्री डूबे किस सुरूर हो?
यह नशा पाते कहाँ से हो?
जवाब मिला – चूर हैं हम मद, औ मुहब्बत में उसके,
दुनिया रौशन है उल्फ़त में जिसके।
तु हर चोट की दरार से रिसके,
रौशनी भरने दे अपनी रूह में।
उसके इश्क़ को ना ढूँढ दिल में,
अपने अंदर जो दीवारें बना रखीं है,
तोड़ आज़ाद हो जा हँस के।
तु भी झूमने लगेगा इस मद में।
अर्थ
शमा – सूफी नृत्य की रूहानी दुनिया।
रूमी – सूफ़ी दरवेश \ संत।
इश्क़ और पानी पात्र
छुआ-छूत और जात की बात,
हमबिस्तर की रात नहीं रहती याद।
ब्लड की बोतल हो जाती है पाक।
आर्गन डोनेशन लेने में
नहीं रहती कोई बात।
बस विवाह, इश्क़ और पानी पात्र में
आड़े आती है जात।
News- Tank Cleaned With Cow Urine
In Karnataka After Dalit Woman
Drinks Water. There are several tanks
in the village with written messages that
everyone can drink water from there.
इश्क़ है जागती रातें
इश्क़ है जागती रातें, उनींदी आँखें, गुनगुनाते गीत।
मुहब्बत है ख़्वाब, सितारे, चिराग़, चाँद
अँधेरी रातें, अधूरा चाँद, अधूरे किस्से।
इस इश्क़ को हीं कहते हैं बंदगी।
हम तो जी रहे हैं यही ज़िन्दगी।
तुम एक बार में लगे टूटने?
हँस कर पूछा चाँद ने।
फ़ुर्सत मिल जाए तो
Topic by Your Quote.
फ़ुर्सत मिल जाए तो
दो बातें हम से भी कर लेना।
एक बात तुमसे कहनी थी-
ना ख़ूबसूरती रहती है,
ना जुनून
जब दो एक हो जाते हैं।
बस रह जाता है इश्क़।
इश्क़-ए-जुगलबंदी
दो दिलों…रूहों की जुगलबंदी है इश्क़।
इश्क़ के हैं कुछ अदब-कायदे।
अज़ाब-ए-हिज्र-ओ-विसाल…
मिलन और वियोग में जीना
है सिखाती इश्क़ की जुगलबंदी।
टूट जाए यह जुगलबंदी,
फिर भी टूट कर जीना है सीखती।
एक दूसरे के लय-ताल पर
जीना है इश्क़-ए-जुगलबंदी।
Topic by YourQuote.
रेत-औ-रज
पैरों में लगे धूल झड़ाते, पूछा उनसे-
क्यों बिखरे हो यूँ? राहों में पड़े हो पैरों तले?
खिलखिला कर राहों के रज ने कहा –
कभी बन जाओ ख़ाक…माटी।
हो जाओ रेत-औ-रज,
ईश्वर और इश्क़ की राहों पर।
समझ आ जाएगा,
ना खबसूरती रहती है, ना जुनून।
जब अहं खो जाए, हो जाए इश्क़ उससे।
दुनिया हसीन बन जाती है गर्द बन कर।
ज़र्रा-ज़र्रा मुस्कुरा उठता है।
तहज़ीब
कुछ से दूरी है ज़रूरी,
अपने आप से इश्क़ करने के लिए।
ये तहज़ीब सिखाते है,
ख़ामियों के परे ज़िंदगी देखने की।
वक्त की कहानी
यह तो वक़्त वक़्त की बात है।
टिकना हमारी फ़ितरत नहीं।
हम तो बहाव ही ज़िंदगी की।
ना तुम एक से रहते हो ना हम।
परिवर्तन तो संसार का नियम है।
पढ़ लो दरिया में
बहते पानी की तहरीरों को।
बात बस इतनी है –
बुरे वक़्त और दर्द में लगता है
युग बीत रहे और
एहसास-ए-वक़्त नहीं रहता
सुख में और इश्क़ में।
You must be logged in to post a comment.