चाँद हो आग़ोश में,
तो सितारों से उल्फ़त नहीं करते।
रौशन हो जहाँ आफ़ताब से,
तो जुगनुओं की रौशनी पर नहीं मरते।
चाँद हो आग़ोश में,
तो सितारों से उल्फ़त नहीं करते।
रौशन हो जहाँ आफ़ताब से,
तो जुगनुओं की रौशनी पर नहीं मरते।
पूछा जलते और ढलते सूरज ने।
तपन के बावजूद हम साज़िश करते रहते है
ताकि चाँद तुम दमक सको
मेरी प्रतिबिंबित रोशनी से।
मिलन ना लिखा हो हमारा।
पर ख्वाहिश है कि
चाँद तेरी दूधिया चाँदनी चमके
आफ़ताब….सूरज की रौशनी से।
Topic by yourquote
हमें जलाने की,
बुझाने की कोशिश ना कर,
हम चराग़ नहीं,
रौशन आफ़ताब हैं।
खुद हीं जल के रौशन होते हैं।
और जहाँ रौशन करते हैं।
मन के अंधेरे को दूर करने के लिए,
आशा का इक चराग़ काफ़ी है।
हौसले की कौंधती बिजली,
कुछ उम्मीद की किरणें
शीतल चाँद की चाँदनी काफ़ी हैं।
कितनी भी अँधेरी रात हो,
रौशन करने को इक आफ़ताब काफ़ी है।
मन के अंधेरा दूर करने के लिए
मन में, टिमटिमाते सितारे सा उल्लास काफ़ी है।
#yourQuoteTopic
चाँद को रोशन
करता है सूरज,
ख़ुद को जला-तपा कर,
अनंत काल से ।
क्या इंतज़ार है उसे,
कभी तो मिलन होगा?
नहीं, आफ़ताब को मालूम,
मिलन नहीं होगा कभी।
फिर भी जल रहा है…….
बे-लौस, निस्वार्थ मोहब्बत में ।
किवदन्तियाँ / पौराणिक कहानी- फल्गु नदी गया, बिहार में है। यह ऊपर से सूखी दिखती है। इसके रेत को हटाने से जल मिलता है। कहते है कि राम और सीता यहाँ राजा दशरथ का पिंडदान करने गए। राम समय पर नही आ सके। अतः ब्राह्मण के कहने पर सीता जी ने पिंडदान सम्पन्न कर दिया। राम के आने पर, उनके क्रोध से बचने के लिए फल्गु नदी ने झूठ कहा कि माता सीता ने पिंडदान नहीं किया है। माता सीता ने आक्रोशित होकर फल्गु नदी को अततः सलिला ( रेत के नीचे बहाने का) होने का श्राप दे दिया.
अर्श….आसमान में चमकते आफ़ताब की तपिश और
महताब की मोम सी चाँदनी
ज़हन को जज़्बाती बना देते हैं.
सूरज और चाँद की
एक दूसरे को पाने की यह जद्दोजहद,
कभी मिलन नहीं होगा,
यह जान कर भी एक दूसरे को पाने का
ख़्याल इनके रूह से जाती क्यों नहीं?
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अर्थ –
अर्श-आसमान।
आफ़ताब- सूरज।
महताब- चाँद।
ज़हन – दिमाग़।
इसे इबादत कहें या डूबना?
ज़र्रे – ज़र्रे को रौशन कर
क्लांत आतिश-ए-आफ़ताब,
अपनी सुनहरी, पिघलती, बहती,
रौशन आग के साथ डूब कर
सितारों और चिराग़ों को रौशन होने का मौका दे जाता है.
अर्थ:
आफ़ताब-सूरज
आतिश – आग
इबादत-पूजा
क्लांत –थका हुआ
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