सोन्धी-सोन्धी ख़ुश्बू बिखर गई फ़िज़ा में.
कहीं बादल बरसा था या आँखें किसी की?
कहा था –
ना कुरेदो अतीत की यादों को.
माज़ी…..अतीत के ख़ाक में भी बड़ी आग होती है.
सोन्धी-सोन्धी ख़ुश्बू बिखर गई फ़िज़ा में.
कहीं बादल बरसा था या आँखें किसी की?
कहा था –
ना कुरेदो अतीत की यादों को.
माज़ी…..अतीत के ख़ाक में भी बड़ी आग होती है.
जीवन में खुश रहने और सार्थकता ढूंढने में क्या अंतर हैं?
क्या दोनों साथ-साथ चल सकतें हैं?
अर्थपूर्णता…सार्थकता के खोज में अतीत, वर्तमान और भविष्य शामिल होतें हैं।
इसके लिये सही-गलत सीखना पङता है
खुशियों के लिये कोई समय, सही-गलत, कोई शर्त नही होती।
खुशियाँ अपने अंदर होतौं हैं, किसी से मांगनी नहीं पङती है।
सार्थकता जुड़ा है – कर्तव्य, नैतिकता से।
सार्थकता और अर्थ खोजने में कभी-कभी खुशियाँ पीछे छूट जाती है।
पर जीवन से संतुष्टि के लिये दोनों जरुरी हैं।
अतीत की स्मृतियों का बोझ दम घोटने लगता है . अौर उनमें जीने की चाहत भी होती है।
यह कोशिश, कुछ ऐसी बात है जैसे – आँधियाँ भी चलती रहें, और दिया भी जलता रहे..।
फारसी कवि उमर खय्याम की रूबैयात जीवन की संक्षिप्तता अौर अल्प अस्तित्व को दर्शाता है । कवि के लिए, जीवन एक शाश्वत वर्तमान है, जो अतीत और भविष्य दोनों से परे है।
इस जीवन के बाद के जीवन के सत्य को जानने की लालसा में
अपने अदृश्य आत्मा…..अंतरात्मा को टटोला।
अन्त:मन से जवाब मिला-
स्वर्ग-नर्क, जन्नत-दोजख सब यही हैं, हमारे अंदर है
I sent my Soul through the Invisible,
Some letter of that After-life to spell:
And by and by my Soul return’d to me,
And answer’d: ‘I Myself am Heav’n and Hell
Omar Khayyám ❤
Translation by- Rekha Sahay
Image courtesy – Aneesh