ज़िंदगी में जो इश्क़ तुमने सिखाये।
जीने के जो आदाब तुमने सिखाये।
ज़माने में यूँ अकेला छोड़,
जीवन के अधूरे सफ़र में साथ छोड़,
वस्ल-ओ-हिज्र के जो तरीक़े सिखाये।
इस हिज्र ने गुरु बन ऊपरवाले से मिलाये।
वस्ल-ए-इश्क़ गुरु बन मुझे मेरा पता बताए।
अर्थ –
* वस्ल-ओ-हिज्र – मिलन और वियोग, प्रेमी
और प्रेमिका का आपस में मिलना और बिछुड़ना।
* हिज्र – अकेलापन, जुदाई, विरह, वियोग,
विछोह, त्याग।