छोड़ आयी हूँ उस दरवाज़े तक।
लौट कर आओगे नहीं उस फ़लक
वापस कभी इस जहान तक।
फिर भी हर आहट पर होता है शक।
नज़रें उठ जाती है इस ललक,
शायद लौट आओ, दिल कहता है बहक।
सूनी राहें देख कदम रह जाते हैं ठिठक।
रूह में रह जाती है कसक।
छोड़ आयी हूँ उस दरवाज़े तक।
लौट कर आओगे नहीं उस फ़लक
वापस कभी इस जहान तक।
फिर भी हर आहट पर होता है शक।
नज़रें उठ जाती है इस ललक,
शायद लौट आओ, दिल कहता है बहक।
सूनी राहें देख कदम रह जाते हैं ठिठक।
रूह में रह जाती है कसक।
बहुत सुंदर।
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😊😊❤❤
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