ज़िंदगी के मेले में कई मिलते हैं
कुछ दूर साथ चलते हैं।
अपनी अपनी मंज़िल की ओर
बढ़ जाते हैं,
जैसे हो दरिया का बहता पानी।
बहती नादिया रुक जाये तो
खो देती है ताज़गी और रवानी।
बढ़ते जाना हीं है ज़िंदगानी।
मंज़िल पाना है जीवन की कहानी।
ज़िंदगी के मेले में कई मिलते हैं
कुछ दूर साथ चलते हैं।
अपनी अपनी मंज़िल की ओर
बढ़ जाते हैं,
जैसे हो दरिया का बहता पानी।
बहती नादिया रुक जाये तो
खो देती है ताज़गी और रवानी।
बढ़ते जाना हीं है ज़िंदगानी।
मंज़िल पाना है जीवन की कहानी।