इश्क़-ए-इल्म में है सुरूर।
पढ़ दिल हो गया मगरूर।
पर ना मिला इश्क़ का इब्तिदा ना इंतिहा।
जब हुआ इश्क़,
इश्क़ की किताब में पढ़ा
कुछ काम ना आया…
ना जाने क्या खोया क्या पाया।
TopicByYourQuote
इश्क़-ए-इल्म में है सुरूर।
पढ़ दिल हो गया मगरूर।
पर ना मिला इश्क़ का इब्तिदा ना इंतिहा।
जब हुआ इश्क़,
इश्क़ की किताब में पढ़ा
कुछ काम ना आया…
ना जाने क्या खोया क्या पाया।
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प्रेम प्रकृति की चालाकी है
ताकि जीवन चलता रहे
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😊
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Khoob
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