लफ़्ज़ों के इस्तेमाल का दाम नहीं लगता।
पर लफ़्ज़ लफ़्ज़ मिल इज़हार करते हैं,
कई नई तस्वीर और तहज़ीब।
कलम के क़ैद-ओ-रिहाई से निकले
लफ़्ज़ ख़ूबसूरत मंज़र हैं ढालते,
या हैं रंग बिगाड़ते।
कविता, खबर, कहानियाँ….
अमूल्य या मूल्यहीन,
शालीन, सभ्य या अश्लील।
लफ़्ज़ों में हैं जादू-मिसाल,
टूटे लफ़्ज़ हैं तोड़ते, मीठे लफ़्ज़ हैं जोड़ते।