जब अपने महफ़ूज़ आशियाने में,
अप्रिय, अनजाने मेहमानों को
नहीं बुलाते इस ज़माने में।
तब
दिल, रूह, तन और मन के पावन आशियाँ में,
क्यों बिना सोंचे सब को
जगह देंना इस ज़माने में?
नासमझी भरे ऐतबार ज़ख़्म
हीं दिया करते हैं हर ज़माने में।
जब अपने महफ़ूज़ आशियाने में,
अप्रिय, अनजाने मेहमानों को
नहीं बुलाते इस ज़माने में।
तब
दिल, रूह, तन और मन के पावन आशियाँ में,
क्यों बिना सोंचे सब को
जगह देंना इस ज़माने में?
नासमझी भरे ऐतबार ज़ख़्म
हीं दिया करते हैं हर ज़माने में।