पैरों में लगे धूल झड़ाते, पूछा उनसे-
क्यों बिखरे हो यूँ? राहों में पड़े हो पैरों तले?
खिलखिला कर राहों के रज ने कहा –
कभी बन जाओ ख़ाक…माटी।
हो जाओ रेत-औ-रज,
ईश्वर और इश्क़ की राहों पर।
समझ आ जाएगा,
ना खबसूरती रहती है, ना जुनून।
जब अहं खो जाए, हो जाए इश्क़ उससे।
दुनिया हसीन बन जाती है गर्द बन कर।
ज़र्रा-ज़र्रा मुस्कुरा उठता है।