बारिश में काग़ज़ की कश्तियाँ तैराते बच्चे
कल दुनिया के समंदर में ग़ुम हो जाएँगें या
खुद विशाल सागर बन जाएँगें।
तितलियाँ पकड़ते नन्हे फ़रिश्ते
दुनिया में गुमनाम हो जाएँगे या
अपनी सफ़ल दुनिया सज़ायेगें।
बच्चों का बचपना बनता है उनकी ज़िंदगी।
ये बचपन का लम्हा पल में गुज़र जाएगा।
जैसा आज़ देंगे, कल वे वही बन,
वही लौटाएँगें।
बहुत सुंदर।
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✨❤
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Super duper excellent poem, Rekha ji. Awesome poem. Loved it so much. ♥️♥️♥️♥️♥️🌹🌹🌹☺☺☺
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Thank You Aparna✨❤🤗
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