आ कर चले जातें है लोग, वहीं जहाँ से आए थे।
पर यहीं कहीं कुछ यादें , कुछ वादे छोड़ जातें हैं।
ग़ायब बस वह एक चेहरा होता है।
जो अक्सर तन्हाईयों को छूता रहता है।
बस रह जाती हैं कुछ कहानियाँ,
सुनने-सुनाने को, आँखें गीली कर जाने को।
साजो-सामान के साथ मेहमान
विदा होतें हैं, यादें क्यों छोड़ जातें हैं?
क्यों यह रस्म-ए-जहाँ बनाई? ऐ ज़िंदगी!
तुम्हारी अपनी,
पैग़ाम-ए-हयात
बहुत सुंदर।
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शुक्रिया वर्मा जी।
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Dard bhari magar yahi satya hai………jo aayaa usey jaana hogaa.
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जी बिलकुल सही कहा ✨❤
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सुना तबियत खराब था। अब कैसे हैं आप।?
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पहले से ठीक है 🙂
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🙁
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