समझो जीना आ गया

फ़साने लिखें, जवाब ना आए।

अनदेखा-अनसुना किया जाए।

ऐसी बेरुख़ी की क्या शिकायतें?

सुकून है तब, संभल कर निकल जायें

जब क़रीब से कमजोर- बिखरती इमारतों के।

तब समझो ज़िंदगी जीना आ गया।

TopicByYourQuote

7 thoughts on “समझो जीना आ गया

Leave a comment