ग़र अपना साथ ख़ुशियाँ देने लगे,
तब ख़ुद को जीतने की राहों पर हैं।
ग़र दूसरों से प्यार पा ख़ुश रहने की
ख्वाहिशें कम होने लगे,
तब ख़ुद से प्यार करने की राहों पर हैं।
ग़र दर्द भरे पलों में मुस्कुरा रहे हैं,
तब निर्भय होने की राहों पर है।
ग़र एकांत ख़ुशनुमा लगने लगा है,
तब अध्यात्म की राहों पर हैं।
यह जोखिम भरा शग़ल मीठा सा नशा है।
पर तय है, इसमें सुकून अनलिमिटेड है।
Wonderful poem, Rekhaji. Always a pleasure to read your blogs. Have a wonderful day. ☺☺
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Thank you Aparna for your constant support ❤
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