मुलाक़ात न होने पाई थी
वक्त-ए- रुख़्सत ।
पर बंद आँखों से देखा था,
एक गहरी सी साँस और
तिरी गीली आँखों का झुक जाना,
क़तरे अश्क़ो का छलक जाना,
सूखे लबों का थरथराना।
तेरे हाथों का यूँ उठ जाना याद है
जैसे डूबने वाला हो कोई।
पर कहा नहीं तूने अलविदा
ये भी याद है।
बहुत सुंदर
LikeLiked by 1 person
✨😊
LikeLike
मार्मिक भाव 👌👌
LikeLiked by 1 person
✨😊
LikeLike
ह्रदयस्पर्शी भावाभिव्यक्ति
LikeLiked by 1 person
आभार अनिता!
LikeLike
🙏🏼😊
LikeLiked by 1 person
✨😊
LikeLike