रेशम सी नाज़ुक

हर रिश्ते के दर्मियान होती है एक डोर।
रेशम सी नाज़ुक विश्वास और भरोसे से बंधी।
राज़, रहस्य, बेवफ़ाई और झूठ आयें बीच में,
तो टूट कर बिखर जाती है।
ग़र बनाने हो या निभाने हों रिश्ते,
एक दूसरे को सब बताओ, सच बताओ।
ग़र सच सहने का ताब ना हो तो मुरझाने दो इन्हें।
रूह की आईनों में देखो, तुम्हें रिश्तों में क्या चाहिए।
वही दो दूसरों को।
वरना ज़िंदगी क़ैद बन जाएगी।

Happy Psychology! Positive Psychology! – Honesty Can Make or Break a Relationship. When you know you can totally trust your mate, it strengthens your love.

10 thoughts on “रेशम सी नाज़ुक

  1. मन भेद मतभेद,, अजब-गजब
    जाने कैसे वजूद में आए मतलब
    एक सम्हाले एक बिखराए तो
    दो रिश्तो में बंध जाता फर्क
    💐 अच्छी अभिव्यक्ति है रिश्तों पर आपकी,,,👌👌

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  2. Aapki kavitayein beyhad khubsurat hoto hoti hain. I am amazed with how beautifully you express realities of life through your poems. Well done.

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  3. इस गहरे अर्थ को हर कोई क्यूँ नहीं समझ पाता! वाकई जब दुनिया से लड़ना हो तो इंसान झेल लेता है, लेकिन रिस्ते में टूट कर बिखर जाता है।
    बहुत ही गेहरा लिखीं आपने मां जी। 👍

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    1. बेटा, समझते सब हैं। पर बे भरोसे वाले इंसान की फ़ितरत कैसे बदल जाएगी? गहरे सबक़ गहरे घाव देते है और ज़िंदगी के सबक़ भी।

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