चारो ओर छाया रात का रहस्यमय अंधेरा,
दिन के कोलाहल से व्यथित निशा का सन्नाटा,
गवाह है अपने को जलाते चराग़ों के सफ़र का।
कभी ये रातें बुला ले जाती है नींद के आग़ोश में ख़्वाबों के नगर।
कभी ले जातीं है शब-ए-विसाल और
कभी दर्द भरी जुदाई की यादों में ।
हर रात की अपनी दास्ताँ और अफ़साने होतें है,
और कहने वाले कह देतें हैं- रात गई बात गई !
शब-ए-विसाल – मिलन की रातें/ the night of union
#TopicByYourQuote
बहुत खूब 💐
LikeLiked by 1 person
शुक्रिया गौतम ।
LikeLike
Welcome ☺️
LikeLiked by 1 person