भटका दिया ज़िंदगी ने मुझे

कुछ पलों के लिए लगा,

भटका दिया ज़िंदगी ने मुझे ।

जब दिल की गहराईयों में झाँक

तब समझ आया।

ज़िंदगी ने नहीं,

जिनसे राहें पूछी थीं,

उन लोगों ने भटका दिया था।

ज़िंदगी ने तो भटके राहों पर,

अँधेरे पलों में भी

कई सबक़ सिखा दिये।

वापस सही राहों पर ला दिया।

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15 thoughts on “भटका दिया ज़िंदगी ने मुझे

  1. Outstanding, fabulous. I hereby give you an exemplary and a fabulous poet award. 👌👌👌👌👌👌👏👏👏👏👏👏👏♥️♥️♥️

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  2. आपकी इस बात की हक़ीक़त का ज़ामिन तो मैं ख़ुद हूँ रेखा जी। ज़िन्दगी तो सही सबक देती है, सही राह दिखलाती है लेकिन ऐसे बहुत से गुमराह करने वाले लोग मिल जाते हैं दुनिया में जिनसे ग़लती से हम राह पूछ बैठते हैं। और कभी-कभी बदकिस्मती कुछ इस तरह भी पेश आती है कि वही लोग रहज़न निकलते हैं जिन्हें हम रहबर समझते रहे थे।

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    1. बिलकुल जितेंद्र जी। ज़िंदगी में ऐसे धोखे मिलना बड़ा आम है। पता नहीं पहचानने में भूल होती है या लोग बड़ी सफ़ाई से दूसरों को गुमराह करते हैं। जब तक सच्चाई समझ आती है। ज़िंदगी बहुत आगे बढ़ चुकी होती है।

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