चाँद, कई बार तुम आइने से लगते हो।
जिसमें अक्स झलक रहा हो अपना।
तुम्हारी तरह हीं अकेले,
अधूरे-पूरे और सुख-दुःख के सफ़र में,
दिल में कई राज़ छुपाए,
अँधेरे में दमकते,
अपने पूरे होने के आस में रौशन हैं।
चाँद, कई बार तुम आइने से लगते हो।
जिसमें अक्स झलक रहा हो अपना।
तुम्हारी तरह हीं अकेले,
अधूरे-पूरे और सुख-दुःख के सफ़र में,
दिल में कई राज़ छुपाए,
अँधेरे में दमकते,
अपने पूरे होने के आस में रौशन हैं।
बहुत सुंदर।
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शुक्रिया।
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चांद अकेला कहां, उसके साथ तो तारे हैं.
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बिलकुल। थोड़े दिनों पहले एक कविता में मैंने यह लिखा है। पर गगन में चाँद तो एक हीं है ना?
धन्यवाद अपने विचार share करने के लिए।
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चांद तो एक ही होता है. वही उसकी पहचान है.
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बिलकुल वही पहचान है। अकेला चाँद हौसला अफ़ज़ाई या तन्हाई को सुकून की तरह से देखना सिखाता है। यह मेरा नज़रिया है। शुक्रिया।
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बिल्कुल सही. एकला चलो रे. चांद की तरह आसमां में चमकते रहो. प्रकाश फैलाते रहो.
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जी! शुक्रिया।
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Wow! Wow! Awesome! I am speechless because your poem is so beautiful.
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Thanks dear! I love the way you appreciate. It’s a great inspiration for me. 😊
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ह्रदय को छू लेने वाली भावपूर्ण रचना 👌🏼👌🏼
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धन्यवाद dear अनिता। 😊
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🤗
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🤗💐
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