दर्द की कायनात और
हिसाब भी कुछ अजीब है।
क़र्ज़ की तरह बढ़ता है।
ना तरकीब किश्तों की,
ना सूद-ब्याज का हिसाब।
ना ठहरता है
ना गुजरता है।
हँस कर छलो तो दर्द बढ़ता है।
जितना भागो, पकड़ता है।
दर्द कहाँ ले जाता है?
यह तय है ज़िंदगी
की राहें और लोगों
को बदलता है।
Awesome poem. Very beautiful.
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Thank you 😊
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