समुंदर की लहरें,
जमीं का ज़ख़्म भरने की
कोशिश में मानो बार बार
आतीं-जातीं रहतीं है।
वक्त भी घाव भरने की
कोशिश करता रहता है।
ग़र चोट ना भर सका,
तब साथ उसके
जीना सिखा देता है।
समुंदर की लहरें,
जमीं का ज़ख़्म भरने की
कोशिश में मानो बार बार
आतीं-जातीं रहतीं है।
वक्त भी घाव भरने की
कोशिश करता रहता है।
ग़र चोट ना भर सका,
तब साथ उसके
जीना सिखा देता है।
बहुत बढ़िया यह कविता
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धन्यवाद !
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Nice one!
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Thank you!
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