ज़िंदगी रोज़ एक ना एक
सवाल पूछती है।
सवालों के इस पहेली में
उलझ कर, जवाब ढूँढो।
तो ये सवाल बदल देती है।
ज़िंदगी रोज़ इम्तहान लेती है।
एक से पास हो या ना हो।
दूसरा इम्तहान सामने ला देती है।
अगर खुद ना ले इम्तहान,
तो कुछ लोगों को ज़िंदगी में
इम्तहान बना देती है।
बेज़ार हो पूछा ज़िंदगी से –
ऐसा कब तक चलेगा?
बोली ज़िंदगी – यह तुम्हारा
नहीं हमारा स्कूल है।
तब तक चलेगा ,जब तक है जान।
बस दिल लगा कर सीखते रहो।
जीवित
चाहते हैं
हर सांस के साथ
हमसे एक नए प्रश्न का उत्तर दिया
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🙏
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जिंदगी के सच को बहुत सुंदर लेखन से प्रस्तुत किया है 👌🏼ये सच ही हैं ,
जिंदगी कभी-कभी इम्तिहान के लिए पराये लोगों को ही नहीं कभी-कभी बेहद अपनों को भी सामने ला खड़ा कर देती हैं ।⚘🙏🏼
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ठीक कहा तुमने। महाभारत भी अपनों के बीच ही हुआ था। वह भी तो रिश्तों का इम्तहान था।
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